लेखक की कलम से

राष्ट्र का हस्ताक्षर…

पन्ने पलट कर देखो ,

कुछ त्रुटि है , शायद

श्रृंखला कहीं से टूटी है , शायद

प्रतिकूलता में भी सृजन हो

उलट कर प्रहार करे

चाहे शत्रु पहाड़ हो

अंत:सलिला सरस्वती को बहने दो

धन-धान्य हो

सभी का सम-भाव से सम्मान हो।

तटस्थ न रहो

प्रहरी बनो

तटों को मिलने दो

कुलों को जुड़ने दो

श्लेष हो , विभोर हो

चीर दे जो तिमिर को ऐसा कोई तीर हो –

ऐसा कोई वीर हो

ऐसा कोई धीर हो।

जिसका अटल हस्ताक्षर हो।

©दोलन राय, औरंगाबाद, महाराष्ट्र

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