लेखक की कलम से

सरकार और सरकारी

{व्यंग्य}

हमारे देश में सरकारी कर्मचारी वो प्राणी होता है, जो खुद को सरकार का दामाद समझता है,जो अपनी खातिरदारी तो पूरी करवाना चाहता है और काम करना अपनी तौहीन समझता है। वक्त पर दफ्तर आने से जिसकी इज्जत कम होती है। दबाब में जल्दी आ भी गए तो अपनी सीट पर मर्जी से ही पहुचेंगे और पहुँच भी गए तो काम ऐसे करेंगे मानो लोगों पर और सरकार पर एहसान कर रहे हों।

ये लोग रिश्वत लेना अपना नौकरी सिद्ध अधिकार समझते हैं। वो खुद को किसी राजा से कम नहीं समझते और इस देश में किसी के हों ना हों पर उनके सालों से उनके अच्छे ही दिन थे। पर आजकल इस प्राणी की नींद और भूख उडी हुई है, स्वभाव कुछ चिडचिडा सा हो रहा है। और हो भी क्यों ना और अच्छे दिन के सपने देख रहे थे पर ये सरकार सपने तो क्या इनकी नींद भी छीन लेगी शायद।

जबसे नई सरकार ने प्रस्ताव रखा है कि शनिवार की छुट्टी समाप्त कर दी जाये और ऑफिस सुबह जल्दी शुरू हों, बेचारे सरकारी कर्मचारी मन ही मन खुद को कोस रहे क्यों वोट दिया और अच्छे दिन का लालच क्यों किया ? इसी चिंता में मगन एक सरकारी कर्मचारी को उसकी पत्नी ने समझाया कि “कल सुबह मंदिर जाकर भगवान से दुआ करना ,बड़ी पूजा या भोग बोल देना भगवान सब ठीक कर देंगे। वो निश्चिंत होकर सो गया। आधी रात को अचानक उसने देखा कि स्वयं प्रभु उसके घर पधारे हैं उसने उन्हें साष्टांग प्रणाम किया और बोला प्रभु आपने क्यों कष्ट किया में तो आने वाला था सुबह।

प्रभु बोले “बच्चा मैं वही तो नहीं चाहता था इसलिए स्वयं आया हूँ, तू ये मत सोच कि तू मुझे रिश्वत देगा तो मैं तेरी सुन लूँगा। ये तेरी भूल है भारत की हजारों करोड  जनता अच्छे दिन के इंतजार में मेरी ओर वर्षो से देख रही है। जहाँ तुम जैसे लोगों ने हर कदम पर उन्हें प्रताडित किया, कभी रिश्वत बसूली तो कभी एक टेबल से दूसरे टेबल पर दौडाया। आम जनता ने कभी इलाज की देरी से अस्पतालों में दम तोडा, तो कभी अपनी एक शिकायत दर्ज करवाने में जूते घिसे। पर तुम जैसे भ्रष्टाचार के पुतलों  के कान पर जूं तक ना रेंगी, तुम लोग तो काम के वक्त लंबी तान कर सोये हो। इतने सालों तुम्हारे अच्छे दिन थे तभी तो सब परेशान थे। और उन्हें अच्छे दिन देने के लिए तुम्हारे अच्छे दिनों की विदाई तो करनी ही होगी आखिर अच्छे दिनों पर सभी हक है ” कहकर भगवान अन्तर्ध्यान हो गए और बेचारा भ्रस्टाचार का पुतला चीख मारकर उठ बैठा।

पत्नी पूछ रही है क्या हुआ जी?कोई बुरा सपना देखा क्या, पर आज उसके पास कोई जबाब नहीं……..

©अर्चना चतुर्वेदी, नई दिल्ली

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