लेखक की कलम से
सावन के झूलों जैसी लचकती जिंदगी …
1.
कहीं बाढ़ कहीं सुखाड़
चिलमिल धूप कहीं फुहार
कहीं खाई कहीं पहाड़
निरव मौन कहीं पुकार
शब्द विस्मय से पूछता
वक्त हौले से देता नकार
पसंद सबको है सबकुछ
फिर क्यों पल घड़ी को रार!
2.
गिला शिकवा क्या करूं जिंदगी से
आंखों में सागर हाथ रेत से भरे हैं
सवालों की दुनिया में लोग लाजवाब हैं
हृदय तार तार होंठ मुस्कान से भरे हैं!
©लता प्रासर, पटना, बिहार