लेखक की कलम से

प्राचीन इतिहास है होली का …

रंगों का त्यौहार होली, हिंदुओं के चार बड़े पर्व में से एक है अर्थात होली एक ऐसा रंग-बिरंगा रंगों का त्यौहार है। जिसे हर धर्म के लोग पूरे उत्साह और मस्ती के साथ मनाते हैं। प्यार भरे रंगों का यह त्यौहार संप्रदाय, जाति धर्म आदि के बंधन खोलकर सभी में भाईचारे का संदेश देता है। इस दिन के अवसर पर सभी लोग अपने पुराने  वाद-विवाद को भूलकर गले लगते हैं और एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं। इस त्यौहार पर विशेष रूप से बच्चे और युवाओं को रंगों से खेलते हुए देखना मनमोहित लगता है।

होली का पर्व ऋतुराज बसंत ऋतु के आगमन पर फाल्गुन मास की पूर्णिमा को आनंद और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व को प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बनाए जाने के पीछे इसका ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व माना जाता है।

प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस हुआ करता था जिसकी एक दुष्ट बहन भी थी, जिसका नाम होलिका (होलिका को आग से न जलने का वरदान प्राप्त था) था। हिरण्यकश्यप का एक पुत्र जिसका नाम प्रह्लाद था। जो विष्णु का भक्त था तथा हिरण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानता था। वह भगवान विष्णु के कट्टर विरोधी था, इसलिए वह भक्त प्रहलाद की विष्णु भक्ति के खिलाफ था। भक्त प्रह्लाद को विष्णु भक्ति करने से रोकने पर भी उसके ना मानने पर हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रहलाद को मारने के लिए बहुत से प्रयास किए लेकिन नाकाम रहा। अंत में हरिण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी और उसने हां भर दिया। भाई के कहे अनुसार होलीका भक्त प्रहलाद को अग्नि में लेकर जलाने हेतु बैठ गई।  होलीका उस आग में पूरी तरह से जलकर राख हो गई लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रहलाद का कुछ भी नहीं बिगड़ा। इस प्रकार होलिका दहन बुराई के ऊपर अच्छाई की विजय है। एक अन्य पौराणिक कथा भी मान्य है जिसके अनुसार भगवान कृष्ण ने इसी दिन गोपियों के साथ रासलीला की थी। इसके उपलक्ष में इसी दिन नंद गांव के सभी लोगों ने रंग और गुलाल के साथ खुशियां मनाई थी।

अंत में कहा जा सकता है कि होली एक मेल, एकता, प्रेम, आनंद एवं खुशी का त्योहार है। इसमें हम सभी को छोटे-बड़े {बुजुर्ग}, भाई-बहन, आस-पड़ोस के साथ मिलकर रहने का संकल्प लेना चाहिए। इस दिन छोटे-बड़े के गले मिलकर उन्हें एकता का उदाहरण देना चाहिए। प्रेम भाव से ही होली खेलनी चाहिए। किसी के साथ जोर जबरदस्ती कर रंग अथवा गुलाल नहीं लगाना चाहिए।.

 

©प्रद्युम्न तिवारी

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