लेखक की कलम से

ग़ज़ल – इज़हार…

दिल उनका भी अब इख़्तियार में नहीं है,

क्यूँ रंगत अब उस रंग-बार में नहीं है।

 

उनके दिल में तो इश्तियाक़ प्यार की है,

पर बहुदा कहते हैं कि प्यार में नहीं है।

 

आहें भर-भर के ताकते है राह अक्सर,

लेकिन कहते है इन्तज़ार में नहीं है।

 

दिल की इज़हार-ए-इश्क़ ही दवा है लेकिन,

दिलचस्पी हालत के सुधार में नहीं है।

 

भूला कर चाहे दिल-लगी कहीं भी जाओ,

फिर भी राहत कोई दयार में नहीं है।

 

हालत मेरी भी है इधर ख़राब काफ़ी,

तन मन दिल धड़कन तक क़रार में नहीं है।

 

दो तरफ़ा आतिश तो लगी है दिल में अपने,

बस ज़ाहिर बिन लौ इस ख़ुमार में नहीं है।

 

क्यूँ काटे बिन इज़हार ज़िंदगी कोई भी।

हासिल कुछ भी तो इस निसार में नहीं है।

 

तुम ही कर दो इज़हार ‘अर्श’ दिल की बातें,

उनके तो शायद संस्कार में नहीं है।

 

– शायर अमित राज श्रीवास्तव ‘अर्श’

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