लेखक की कलम से

नन्ही चिड़िया ….

बूढ़े बरगद ने जब क्रोध में अपनी शाखाएं हिलाई।

उल्लू, बंदर, चूहे, सर्प सब सहम गए, मेरे भाई।

पर चहचहाती नन्ही चिड़िया को यह बात समझ ना आई।

वह उड़ती दाने लेने को ओर आ

जाती,

अपने नन्हें बच्चों के पास,

चोंच में दे जाती दाने फिर उड़ जाती।

जब चिड़िया ने ये प्रतिक्रिया

बार-बार दोहराई ।

बूढ़े बरगद ने आपा खो दिया

फिर मेरे भाई ।

उत्तेजित होकर वो बोला चिड़िया से

नहीं जानती तुम जंगल नियम को।

क्या तुम्हें संस्कारों की भाषा समझ ना आई ।

पर चिड़िया चहचहाने की धुन में रमी थी ।

उसे अपने नन्हें बच्चों के आगे कहां

जंगल के नियमों की पड़ी थी।

 

©कांता मीना, जयपुर, राजस्थान                 

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