लेखक की कलम से
जब से हो तुम मिले ….
ग़ज़ल
भोर की जब किरन है ‘थिरकने’ लगी,
प्रेम की गागरी तब छलकने लगी !
रात हो या कि दिन जब से हो तुम मिले,
हर घड़ी हर जगह मैं चहकने लगी !
इस कदर प्यार के रंग में मैं रंग गयी,
बिन पिये भावनाएं बहकने लगी !!
खूबसूरत फ़ज़ाओं की रंगीनियां,
देखकर कोकिला भी कुहकने लगी !!
इन नशीली हवाओं का है यह असर,
प्रीति की आग दिल में दहकने लगी !!
जब कभी प्यार से तूने है छू लिया,
बन के खुश्बू हवा में गमकने लगी !!
बन गये चांद हो तुम ये तेरी क्षमा,
बन चकोरी तुम्हारी, महकने लगी !!
©क्षमा द्विवेदी, प्रयागराज