लेखक की कलम से
ज़हर ….
उम्मीदों के समुद्र में फेंकी ज़हर की बोतल मिली
मिली क्या सील बिना टूटी फूटी सही सलामत मिली
एतराज़ नहीं था, के इत्र की बोतल जैसी ललचाती मिली
एक अजनबी अंजनी सी कई कहानी शहद घोल कर मिली
ज़िंदगी आसान नहीं इसी ज़हर से ज़ाहिर करती मिली
ज़हर की बोतल की रंगीनियत कांच की तरह साफ़ ही मिली
मिली है? नहीं ..वो तृप्ति संतुष्टि जिंदगी से कभी किसी को नहीं मिली
वाकिफ होते हैं सब, अपनी करनी से फिर भी दिल दुखाने की प्रथा धुलती ना मिली
इस ज़हर के घोल को बोतल से निकलना चाहा पर सील खुली ना मिली
मुक्ति ज़हर पी कर भी इंसान की रूह को सुकून भरी कर्मों में रोटी ना मिली
उम्मीदों से भरी चमचमाती ज़हर की बोतल जिंदगी में तैराकी बनाती मिली
©हर्षिता दावर, नई दिल्ली