लेखक की कलम से

रु़ह़ …

 

मैं कोई ग़ज़ल तो नहीं जि़से,

तुम व़क्त़ वेवक्त़ गुनगुना लो।

 

मैं कोई नज़्म भी नहीं जि़से,

जब चाहें हाले दि़ल सुना लो।

 

मैं कोई अफ़साना भी नहीं जि़से,

चाहे याद रखो,चाहें भु़ला दो।

 

मैं कोई आशि़याना भी नहीं जि़से,

अपने दिल का तुम घ़र बना लो।

 

मैं कोई मंजि़ल भी नहीं जि़से,

तुम अपनी ऱाह बना लो।

 

मैं कोई द़रिया भी नहीं ज़हां,

तुम दिल की आग़ बु़झा लो।

 

मैं कोई द़रगाह भी नहीं ज़हां

तुम सु़बह शा़म सज़दा कर लो।

 

मैं तो बस इक ए़हसास हूं जि़से,

तुम  अपने में म़ह़सूस कर लो।

 

मैं तो बस रु़ह़ हूं तुम्हारी जि़से,

तुम अपने जि़गर में बसा लो।

 

©ऋतु गुप्ता, खुर्जा, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश                                

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