लेखक की कलम से

कर्मचारी बनाम कामचोरी

व्यंग्य

सरकारी मुलाजिम हुए और जो कामचोरी न सीखी तो लानत भेजें  खुद पे। और इस हुनर के हुनरमंदों से शागिर्दी सीखें।

कामचोरी तो हो पर दिलजोई भी हो, तो कामचोरी भी ऐब न रहे. जो व्यक्ति काम कराने आए, उसके काम को गौर से देखें और देखते रहें। जिससे उसे यकीन हो जाए कि आप अनुभवी हैं. भले मन में कोई सुरीली धुन चल रही हो और सामने वाले के काम से उसका कोई लेना देना न हो।

फिर उसके फॉर्म में ऐब निकालें। उसका सुधार बताएँ. ये भी जोड़ दें कि हम तो चाहते थे कि अभी इसी दम ये काम कर दें। आप तो अपने ठहरे…पर मशीन ही एलाउ न करेगा। यकीन मानिए जनाब वो आदमी आपको धन्यवाद कह कर जाएगा और आप मन में चलने वाली धुन को अब गुनगुना भी सकेंगे।

ऐसे ही दूसरा नुस्खा है कि अपने पड़ोसी को प्यार करें। हाँ भई, यीशु भी तो कह गए हैं. तो कार्यालय में पड़ोसी हुआ कौन? दूसरा कर्मचारी. उसकी मदद को हमेशा तैयार रहें. कपछ ऐसी तत्परता से कि अपना काम भी छोड़ कर उठ जाएँ. आप से मदद न भी माँगी जाए, तो भी पीछे न रहें. मदद न दे पा रहे हों, तो आउटसोर्सिंग करें. दूसरे से मदद मुहैया कराएँ. पर खुद भी मुस्तैदी से डटे रहें. उसका काम हो जाने पर उस समस्या की विवेचना करें. ऐसा कर के आप कुछ समय और काट सकेंगे। आखिर यही तो आपका उद्देश्य है।

अब भी न ले पाएँ हों, आप तो एक और तरीका बताते हैं. चिंता करें. जी हाँ चिंता करें. पर खालिस चिंता ही करें, काम हर्गिज नहीं . हैरान परेशान दिखें. हो सके तो और क्षमता बढ़ा लें, दूसरों को भी परेशान कर दें।

इसी तर्ज पर बिन मांगी सलाह देते फिरें। जो काम जीवन में न किया हो, उसके बारे में भी। इससे जूनियर्स पर रौब गाफिल होगा और सीनियर्स की नजर में आप काबिल नजर आएँगे। आध्यात्म की शरण में जाएँ और कर्त्ता भाव को गिर जाने दें. यही है परम आनंद। यही है मोक्ष!

लखी बरनवाल
दुर्गापुर वेस्ट बंगाल

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button