लेखक की कलम से

तब कोई जाति नहीं होती …

 

 

मनुष्य

जन्म के पश्चात् भी अछूत मानते हैं

घर और (व्यक्ति) को

और मृत्यु के पश्चात् भी अछूत मानते हैं

घर और (व्यक्ति) को

रहा बीच का जीवन वो अपने कर्मों से

अछूत बना लेता है व्यक्ति….

तो दोनों में जब समानता है कि

व्यक्ति न जन्म पर पवित्र था

न मृत्यु पर पवित्र था ??

तो इंसान, इंसान बनकर क्यों नहीं रहता

क्यों छूत अछूत की भावना

पैदा करके विद्रोह फैलाता है

जब कि जन्म लेने पर

केवल एक व्यक्ति होता है (स्त्री या पुरुष)

तब कोई जाति नहीं होती

उस व्यक्ति के मन में

बडे होने पर ऐसा क्यों!

क्योंकि पैदा करने वाले परिवार

ऐसा सिखाते हैं ना कि

व्यक्ति खुद सीखता है

एक अच्छे मनुष्य को हिंसक बना देते हैं,

लोग और परिवार ।?…..

 

©शिखा सिंह, फर्रुखाबाद, यूपी                                       

Back to top button