नई दिल्ली

स्मार्टफोन न होने से गांव का हर तीसरा बच्चा पढ़ाई से महरूम, जबकि शहर के बच्चों में मेंटल हेल्थ बड़ी वजह …

नई दिल्ली । कोरोना काल से लेकर अब तक देशभर में अनेक शैक्षणिक संस्थान बंद हो गए हैं। वहीं सालभर स्कूलों में ताला लटका रहा। इससे बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ा तो वहीं देशभर के करीब 37 प्रतिशत बच्चों को शिक्षा से दूर होना पड़ा। वहीं अनेक परिजनों की नौकरी छूट जाने के कारण भी वे शिक्षा से वंचित हो गए। रिपोर्ट बताती है कि जिन बच्चों के पास मोबाइल, स्मार्टफोन व दूसरे साधन थे वे शिक्षा से जुड़े रहे वहीं दूसरे बच्चों पर घर की जिम्मेदारी का बोझ आ जाने से पढ़ाई छूट गई। इस दौरान दलित व गरीब तबके के बच्चों को सबसे ज्यादा असर पड़ा है।

कोविड के चलते पिछले 18 महीनों में स्कूली बच्चों की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हुई है। शहरी इलाकों में तो कुछ हद तक डिजिटल लर्निंग की सुविधाएं ज्यादा रहीं, लेकिन गांवों में खास करके सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे सिर्फ कागजों पर ही 2 क्लास आगे बढ़े हैं, असल में वे कुछ भी नया नहीं सीख पाए हैं। डिजिटल डिवाइड की इस हकीकत को समझने के लिए और ग्रामीण इलाकों में ग्राउंड जीरो पर पहुंचा। इसके लिए हमने दिल्ली से करीब 80 किमी दूर UP के हापुड़ जिले के पूठा हुसैनपुर गांव और नोएडा के एक शहरी इलाके को चुना। वहां के पैरेंट्स, टीचर्स और बच्चों से बात की।

हापुड़ जिले में स्थित पूठा हुसैनपुर दलित बहुल गांव है। यहां ज्यादातर परिवारों के बच्चे सरकारी स्कूल में ही पढ़ने जाते हैं। गांव के सरकारी स्कूल में जैसे ही हम दाखिल हुए वैसे ही बच्चों की हंसी-ठिठोली, शोर-शराबा हमारे कानों में गूंजने लगा। इसी गांव की रहने वाली 9 साल की महक चौथी क्लास में पढ़ती है और पिछले 18 महीने में एक भी दिन स्कूल नहीं गई है। घर पर इतनी गरीबी है कि दो वक्त के भोजन के लिए मां-पिता को संघर्ष करना पड़ता है।

लवेश जाटव पिछले 18 महीने में महज दो चार दिन ही स्कूल जा पाए हैं। उनके पापा मजदूरी करते हैं, स्मार्टफोन खरीदने के पैसे नहीं हैं। लवेश जाटव पिछले 18 महीने में महज दो चार दिन ही स्कूल जा पाए हैं। उनके पापा मजदूरी करते हैं, स्मार्टफोन खरीदने के पैसे नहीं हैं। महक की मां सरिता बताती हैं, “बेटी महक चौथी क्लास में पहुंच गई है, लेकिन उसे कुछ नहीं आता है। मास्टरों ने पता नहीं इसे कैसे चौथी क्लास में पहुंचा दिया। हमारे घर में कॉल करने वाला फोन तक नहीं है। मेरी बेटी के दो साल पूरी तरह से खाली चले गए।”

इसी तरह लवेश जाटव पिछले 18 महीने में महज दो चार दिन ही स्कूल जा पाए हैं। 12 साल के लवेश चार भाई बहन हैं। 6 लोगों के परिवार में सिर्फ एक मोबाइल फोन है। वह भी बिना इंटरनेट वाला। पिछले साल जब लॉकडाउन लगा तो लवेश 6वीं में थे। अब जब दूसरी लहर के बाद जब स्कूल खुले हैं, तो कागजों पर वे आठवीं क्लास में आ चुके हैं, लेकिन 7वीं क्लास में कुछ भी नहीं सीख सके हैं।

लवेश बताते हैं कि स्कूल के टीचर कहते थे कि अपने पिता से स्मार्टफोन खरीदने की जिद करो, लेकिन हमारे पापा दिहाड़ी मजदूर हैं, उनकी हैसियत स्मार्टफोन खरीदने की नहीं थी। अब लवेश फिर से स्कूल जाने लगे हैं और अभी पुरानी ही क्लास की चीजें सीख-समझ रहे हैं।

पूठा हुसैनपुर गांव के स्कूल में 256 बच्चे पढ़ते हैं। ज्यादातर बच्चे दलित और गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। स्कूल आने के अलावा उनके पास पढ़ाई का कोई जरिया नहीं है। पूठा हुसैनपुर गांव के स्कूल में 256 बच्चे पढ़ते हैं। ज्यादातर बच्चे दलित और गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। स्कूल आने के अलावा उनके पास पढ़ाई का कोई जरिया नहीं है।

8वीं तक लगने वाले इस स्कूल के हेडमास्टर राजकुमार शर्मा बताते हैं कि उनके स्कूल में 256 बच्चे पढ़ते हैं। कोविड संकट की वजह से पिछले 18 महीनों में उनका स्कूल सिर्फ डेढ़ महीने ही लग सका, वह भी कई प्रतिबंधों के साथ। स्कूल के सिर्फ 50% बच्चे ही थोड़ी बहुत पढ़ाई कर पाए हैं। बच्चों का पढ़ाई का स्तर पहले के मुकाबले भी गिर गया है। अभी हम पिछला रिवीजन ही करा रहे हैं, नया पढ़ाना तो अभी दूर की बात है। आठवीं क्लास में पढ़ने वाला बच्चा छठवीं क्लास के स्तर का भी नहीं है, उसे जो कुछ आता था 2 साल में वह भी भूल गया है। अब उनको सब पुराना ही पढ़ा रहे हैं।

हुसैनपुर के इसी स्कूल में पढ़ाने वाली राधा शर्मा 6वीं की क्लास टीचर हैं। राधा अपने छात्रों को गणित और विज्ञान पढ़ाती हैं। वे बताती हैं कि पिछले डेढ़ साल में बच्चों की पढ़ाई पर बहुत ज्यादा असर पड़ गया है। इस वक्त में लर्निंग गैप बहुत ज्यादा हो गया है। हमारी प्राथमिकता है कि हम लर्निंग गैप को भरें। इसके बाद बच्चों की बुनियादी भाषा और अंक ज्ञान सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। जो बच्चा 8वीं में हैं, उसको हम 6वीं क्लास की चीजें भी रिवाइज कराते हैं और साथ में 8वीं क्लास की भी कुछ-कुछ नई चीजें बताते हैं।

हुसैनपुर के इसी स्कूल में पढ़ाने वाली राधा शर्मा 6वीं की क्लास टीचर हैं। वे बताती हैं कि बच्चों के बीच लर्निंग गैप ज्यादा हो गया है। इसे अब हम कम करने की कोशिश कर रहे हैं। हुसैनपुर के इसी स्कूल में पढ़ाने वाली राधा शर्मा 6वीं की क्लास टीचर हैं। वे बताती हैं कि बच्चों के बीच लर्निंग गैप ज्यादा हो गया है। इसे अब हम कम करने की कोशिश कर रहे हैं।

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