लेखक की कलम से

जरूरी है जीवन में दोस्त …

यूं तो दोस्तों की कोई कमी नहीं,

पर ए दोस्त तेरे बगैर उम्र कट रही है,

पर ज़िंदगी नहीं।

 

तुम तो मेरे रहबर हो,

हमसाया हो तुम्हीं,

तुम्हें भूल जाना मेरे बस में नहीं।

ज़िंदगी में तुम्हारे बिना कुछ नहीं,

यूं तो दोस्तों की कोई कमी नहीं,

पर ए दोस्त तेरे बगैर उम्र कट रही है,

पर ज़िंदगी नहीं।

 

रात की शिफ्ट में काम करके,

तुम्हारा वो बाहर से ताज़ी हवा के,

झोंके की तरह घर में आना,

मां कहकर मुझसे लिपट जाना,

मुझ में प्राण फूंक देना,

मेरी नस-नस में ताज़गी का संचार होना,

मुझे आज भी याद है,

ज़िंदा तो हैं पर ज़िंदगी नहीं।

यूं तो दोस्तों की कोई कमी नहीं,

पर ए दोस्त तेरे बगैर उम्र कट रही है,

पर ज़िंदगी नहीं।

 

मुझे आज भी याद है,

जाड़े की वो सर्द ठंडी रातें,

तुम घर से कुछ क्षण के लिए, कह कर गए थे,

पर वापस नहीं लौटे,

हम तुम्हारा इंतजार करते रहे पल-पल,

पर तुम लौटकर नहीं आए,

कितनी रातें यूं ही गुज़र गई,

वो घने कोहरे से ढकी सर्द रातों में,

तुम ना जाने कहां खो गए,

तुम्हारी कमी तो ज़िंदगी भर रहेगी ए दोस्त।

यूं तो दोस्तों की कोई कमी नहीं,

पर ऐ दोस्त तेरे बगैर उम्र कट रही है,

पर ज़िंदगी नहीं।

 

इतने इंतज़ार के बाद,

जब तुम लौटे तो,

एक निर्जीव शरीर के रूप में आए,

जब अंतिम बार तुम्हारे,

निष्प्राण शरीर को मैंने छुआ,

तुम्हारा शरीर ठंडा बर्फ के समान था,

तुम्हारे मासूम सुंदर चेहरे को देखा तो,

लग रहा था तुम गहरी नींद में सोए हुए हो,

वो पत्थर बना हुआ खामोश ठंडा शरीर,

जब मैंने तुम्हारे होठों को चुमा,

तो उनमें कोई हरकत नहीं थी।

जब मैंने तुम्हारे बदन को छाती से लगाया,

तो बस एक अजीब-सा ठंडा एहसास था,

मेरा खुद का बदन पत्थर बन गया था,

यह एहसास मैं ज़िंदगी भर नहीं भूलूंगी,

मैं ज़िंदा तो हूं पर ज़िंदगी नहीं।

यूं तो दोस्तों की कोई कमी नहीं,

पर ए दोस्त तेरे बगैर उम्र कट रही है,

पर ज़िंदगी नहीं।

 

जन्माष्टमी की आधी रात को,

जब तुमने जन्म लिया था,

तब पहली बार तुम्हें गोद में,

लेकर छाती से लगाया था,

वो तुम्हारा निग्गा गुनगुना-सा एहसास,

मुझे आज भी याद है।

उस बर्फ बने ठंडे शरीर का एहसास,

मुझे आज भी याद है।

तुम तो चले गए पता नहीं कहां,

हम गहरे अंधकार में डूब गए,

ज़माने ने बहुत समझाया,

पर तुम्हारे बिना कुछ ना था,

तुम्हारा होना एक अलग ही एहसास था,

तुम्हारे बिना ए दोस्त कुछ भी नहीं।

यूं तो दोस्तों की कोई कमी नहीं,

पर ए दोस्त तेरे बगैर उम्र कट रही है,

पर जिंदगी नहीं।

 

बड़े अरमान थे तुम्हारा सेहरा देखने के,

अरमान था तुम्हें घोड़ी चढ़ता हुआ देखूं,

पर ऊपर वाले को मंज़ूर नहीं था।

अरमान था तुम्हारी औलाद को देखूं,

गोद में लेकर लोरी सुनाऊं,

उन्हें आंगन में ठुमकता हुआ देखूं,

उनकी किलकारियां सुनूं,

उन्हें ढेर-सारी कहानियां सुनाऊं,

पर ऐसा मेरा नसीब ना था।

बस ज़िंदगी एक दर्द बन कर रह गई,

तुम्हारे बिना मन को चैन कहां,

तुम्हारे बिना जीवन….

जीवन कहां? ए दोस्त।

यूं तो दोस्तों की कोई कमी नहीं,

पर ए दोस्त तेरे बगैर उम्र कट रही है,

पर जिंदगी नहीं,

उम्र कट रही है,

‌‌                 पर जिंदगी नहीं।

 

©लक्ष्मी कल्याण डमाना, छतरपुर, नई दिल्ली 

Back to top button