लेखक की कलम से

पचास का नोट …

आज अनमारी में चीपके पचास के नोट को निकालते समय रीता की आखें नफरत से जल उठी थी मानों वो नोट ही नहीं उसको देनें बाले उसके जेठ को भी उस के आखों से नीकलनें बाली ज्वाला से जला देना चाहती हो

मगर दूसरे ही पल उसने सोचा अगर उस दिन नोट देते हुए उसके जेठ ने अगर ये न कहा होता

-रीता गीभ  एंड टेक का जमाना है बेबी आगे से तुमको भी इन नोटो के बदले कुछ तो देना पडेगा

फीर उसकी भयावह हसीं

मगर उस दिन उन फेके हुए नोट उठाने के सीवा उसके कायर पती ने कोई चारा भी तो नहीं छोडा था

जब लडकी छेडने के आरोप में नौकरी से निकाल दिया गया  तो उसनें फांसी लगा ली

एक पल को भी रीता और अपनी बेटी रीया की याद नहीं आयी उसे

यह सोचते वह घर को भागी तो देखा उसकी माँ उसे एमबुलेंस से हास्पिटल ले जा रही है

वह उसके साथ चुपचाप बैठ गयी माँ और

हास्पिटल से माँ उसे सीधे अपने घर ले लगी

हाथ में रखे उस पचास के नोट को उसने अपनी अनमारी में अच्छी तरह लगा दिया जब भी मन भटकता वह उसे देख पढाई करने लगती माँ का साथ पा वह  नौकरी के लिए अनेक आवेदन देनें लगी थी बेटी भी खुश थी

मगर वह पचास का नोट हर दिन उसकी आँखों में आंशू ले ही आता था

दो साल बाद आज उसे वापस करनें जब वो जा ने बाली  थी

तो हजारों तरह के ख्याल उसके मन में आ रहे थे

तभी काल बेल बजी उसके सामनें उसके जेठ थे

उसने एकपल न गवातें हूए उस नोट को वापस उनकी ओर बढाते हुए कहाँ

आज आप से भी उच्चपद पर आशीन होकर जेठ जी आपका सीखाया पहला पाठ की गीभ एंड टेक का जमाना है हमेंशा याद रहेगा

यह सुनकर उसके जेठ के हाथ माफी मागनें को जुड गये

 

©डा. ऋचा यादव, बिलासपुर, छत्तीसगढ़           

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