लेखक की कलम से

राख….

चीखना चिल्लाना, झगड़ा, तकरार

 

तोहमत लगाना, रोदन शिकायतें

 

बदल जाती हैं खामोश तन्हाई में

 

पर खामोशी भी

 

चीख चीख कर वही सवाल

 

तोहमतें लगाती है

 

फिर एक समय बाद तन्हाई

 

खामोश चीखों, सवालों,

 

तोहमतों की भी सिसकते हुए

 

मृत्यु हो जाती है

 

रह जाती है राख प्रेम की

 

जो उड़ जाती है

 

 कुछ प्रवाहित कर दी जाती है

 

अश्रुओं की नदी में

 

एक समय बाद

 

 रह जाती है स्मृति

 

वो भी विस्मृत होने के लिए

 

एक समय बाद…

 

तुम सुन रहे हो ना…

©उर्वशी शर्मा गौतम, शिवपुरी, मप्र

परिचय- शासकीय शिक्षिका, एमए हिन्दी एवं अर्थशास्त्र, डीएड, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन।

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