मध्य प्रदेश

ऐसा देवी मंदिर, जहां सूर्य की दिशा के साथ बदलती हैं मां अपना स्वरूप …

सतना. मध्य प्रदेश के सतना जिले में मां कालका देवी की एक ऐसी अद्भुत प्रतिमा है, जो अपनी खासियत के लिए ख्यात है। यहां के पुजारी का कहना है कि यहां विराजमान मां कालका देवी सूर्य की दिशा के अनुरूप नेत्र का स्वरूप बदलती हैं। करीब 800 साल पुराने इस मंदिर में साल के दोनों नवरात्रि में भक्तों का सैलाव उमड़ता है. यहां जो भी भक्त अपनी मन्नत लेकर आता है, मां कालका उसकी मन्नतें अवश्य पूरी करती है.

वैसे तो आपने माता के कई मंदिर देखे होंगे, लेकिन सतना जिला मुख्यालय से महज 13 किलोमीटर दूर अमरपाटन रोड स्थित भटनवारा ग्राम में मां कालका देवी का एक ऐसा अद्भुत प्रसिद्ध मंदिर है, जहां की खासियत जानकर आप दंग रह जाएंगे. जी हां! इस मंदिर में विराजित मां कालका देवी की प्रतिमा का स्वरूप सूर्य की दिशा के अनुरूप बदलता है.

आपने वैष्णो देवी और मैहर की मां शारदा देवी के श्रृंगार और भव्य स्वरूप को देखा होगा, ऐसी ही भटनवारा में भी मां कालका देवी की अनोखी प्रतिमा है, जो अपनी खासियत की वजह से काफी प्रसिद्ध है. मां कालका देवी की यह प्रतिमा करीब 700 से 800 वर्ष पुरानी बताई जाती है. इसे कोलकाता में विराजमान देवी की बहन कालका का स्वरूप माना जाता है.

बताया जाता है कि यह प्रतिमा गांव में करारी नदी के पास थी, ऐसा माना जाता है कि इस गांव के राजा मनन सिंह को यह प्रतिमा करारी नदी के किनारे मिली थी, तब उन्होंने नदी के किनारे एक छोटा सा मंदिर बनाकर मां की प्रतिमा को स्थापित करने का प्रयास किया था, लेकिन मां ने उस मंदिर में प्रवेश नहीं किया. अंत में बिना मंदिर के ही मां की प्रतिमा नदी के किनारे रखी रही. बाद में करीब 70 दशक में मां की प्रतिमा नदी के पास बनी मंदिर में लाई गई, और मां कालका यहां विराजमान हो गई. शनैः शनैः मंदिर का उन्नयन होता गया और यहां साल के चैत्र और शारदीय दोनों नवरात्रि में श्रद्धालुओं का मेला लगने लगा.

मां के मंदिर की महिमा के बारे में यहां दर्शन करने आए एक भक्त ने बताया कि यह मां का बहुत पुराना प्रसिद्ध मंदिर है. यहां हर साल नवरात्रि के समय भक्तों का तांता लगता है.  माता सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं. उन्होंने कहा कि यहां माता के नेत्रों का स्वरूप सूर्य की दिशा के अनुरूप बदलता रहता है, मां कालका देवी की महिमा अपरंपार है, हमारी सभी मनोकामनाएं मां पूर्ण करती हैं.

लोगों की मानें तो यह मूर्ति मौर्य- शुंग वंश कालीन है. कई बार पुरातत्व विभाग के अधिकारी लोग यहां आए हैं, उन्होंने बताया था कि यह मूर्ति यक्षिणी है. यहां के पुजारी का कहना है कि देवी मां के नेत्र सूर्य की दिशा के अनुरूप बदलते हैं. जो अपने आप में अद्भुत स्वरूप है. यह परिवर्तन पूर्व से पश्चिम की ओर होता है, जिससे मां के चेहरे के भाव में भी परिवर्तन देखने को मिलता है, मां कभी वात्सल्य, कभी रौद्र तो कभी एकदम शांत भाव में दिखती हैं.

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