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योगीजी की दावत…पार्ट 2

के. विक्रम राव

लखनऊ। इस कार्यशैली के परिणाम में 120 माफिया सरगना जन्नत भेज दिये गये। छह सौ करोड़ की कब्जियायी जनसम्पत्ति राज्य को वापस मिल गयी। ढाई हजार से ज्यादा अपराधी जेल वापस हो गये। योगीजी का दावा है कि बड़ी संख्या में अपराधी जमानत और मुचलका निरस्त करा कर सींखचों के पीछे ही स्वयं को ज्यादा सुरक्षित मानते हैं। एनकान्टर से निरापद। जान है तो जहान है।

इसी विशिष्टता के बार में अमेरिका के प्रतिष्ठित जान हापकिन्स यूनिवर्सिटी के दक्षिण एशियाई विषयों के अध्ययन केन्द्र के निदेशक वाल्टर एण्डर्सन ने लिखा था कि: ”मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का हमला संगठित अपराध और भ्रष्टाचार पर है। वे सफल होते दिखते हैं।” चूंकि अपनी स्वयं की युक्ति के अनुसार योगीजी पूर्णकालिक राजनेता नहीं हैं, अतः कई पूर्वाग्रहों से मुक्त हैं।

वर्षों पूर्व योगीजी का कार्यक्षेत्र पौढ़ी पर्वतों से उतरकर पूर्वांचल के ताप्तीतट पर विस्तृत हुआ। अब में सत्तर जिलों में व्यापक है। अन्य राज्यों के चुनावों के कारण ज्यादा फैला है। गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार और हैदराबाद आदि में उनका प्रभाव खूब दिखा। आगे उनका जलवा बंगाल विधानसभा के अभियान के दौरान दिखेगा। अतः योगीजी अब बाल और उद्धव ठाकरे की भांति एक ही सूबे मात्र के नेता नहीं रहे। कार्टूनिस्ट और हिन्दू-हृदय सम्राट बने बाल केशव ठाकरे को हिन्दू हितों के रक्षक पद से योगीजी ने बहुत पीछे ढकेल दिया है। मसलन शहर औरंगाबाद है। उसका नाम शिवाजीपुत्र संभाजी के नाम पर करने का निर्णय तीन दशक पुराना है किन्तु अभी भी मुगल बादशाह के नाम पर ही चल रहा है। योगीजी ने अकबरवाले इलाहाबाद, नवाबों के फैजाबाद और मुगलसराय जंक्शन का नाम परिवर्तन कर कायापलट की लहर चलायी है। कबतक क्रूर लुटेरों के नाम हम संवारते रहेंगे?

इस सिलसिले में योगीजी के गत दो दशकों के संसद के बाहर के बयानों का विवेचन करें तो स्पष्ट होता है कि उनकी विचारधारा सियासी अवसरवादिता से ग्रसित नहीं रही। इसका प्रमाण सांसद योगीजी द्वारा हमारे इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नालिस्ट्स (आईएफजेडब्ल्यू) की राष्ट्रीय परिषद सम्मेलन (गोरखपुर में 5 नवंबर 2011) में दिये उद्घाटन भाषण में है। तब उन्होंने पड़ोसी हिन्दू नेपाल पर मंडराते कम्युनिस्ट चीन के खतरे का विशद जिक्र किया था। नेपाल को हिन्दू राष्ट्र बनाने का संकल्प दोहराया था। आज नेपाल में खतरे का योगीजी ने दशक पूर्व ही अनुमान लगा लिया था। तब राष्ट्र भर से हमारे तीन सौ प्रतिनिधि काठमाण्डो, लुम्बिनी आदि भी गये थे।

अब योगीजी से अनुरोध है। ऐतिहासिक चौरा-चौरी काण्ड की शताब्दी अगले वर्ष फरवरी 4 को पड़ेगी। यह उनके क्षेत्र में है। समारोह के अतिरिक्त हिंसा-अहिंसा की परिभाषा पर एक सघन चर्चा भी हो। बुद्धवाली अहिंसा जिससे भारत यवनों तथा इस्लामी गुलामी का शिकार रहा उचित है? अथवा न्यायार्थ अपने बंधु को भी दण्ड देना धर्म है वाला सूत्र? अर्थात् बालाकोट का आतंकी अड्डा ध्वस्त करना। या पुलवामा में पाकिस्तानी साजिश के सबूत मांगना?

योगीजी ही ऐसी बौद्धिक बहस करा सकते हैं। अवसर समीचीन है। गांधीवादी स्वयं स्वीकारते हैं कि चौरा-चौरी जन—आन्दोलन चलना चाहिये था। बापू द्वारा वापस लेना त्रुटिपूर्ण था। अतः भविष्य में ऐसी त्रुटि न हो।

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