लेखक की कलम से

ख़तम हो रही है बुजुर्गों की जगह …

खा रहे हैं दर दर की ठोकरें, अवसादग्रस्त बुजुर्गों की संख्या में हो रही बढ़ोतरी

 

हमारे देश में महिलाओं और बच्चों की तरह बुजुर्ग भी अभाव और अपमान के बीच जीने को विवश हैं। कहने के लिए बुजुर्गों के लिए अनेक सरकारी योजनाएं संचालित की जा रही हैं। बावजूद उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा है, उल्टे और भी बिगड़ती ही जा रही है। हम बहुत शान से कहते हैं कि आज का भारत युवा भारत है लेकिन अगले पचास सालों में युवा भारत बूढ़ा भारत हो जाएगा। उस समय तक भी ऐसी ही समस्याएं बनी रहेंगी तो भावी बुजुर्गों के लिए जीना भी बहुत दूभर हो जाएगा। वैसे देखें तो सरकारी सहयोग भी नगण्य ही है । अपने देश में स्वास्थ्य पर कुल जीडीपी का मात्र 1.21 फीसद ही खर्च किया जाता है, जबकि इसे दुगुना करने का वादा किया जाता रहा है। बुजुर्गों की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं अब उन्हें अपनों से ही यातनाएं मिल रही हैं। उनको अपनी औलादों की क्रूरता को झेलने के लिए विवश होना पड़ रहा है। घर हो या बाहर ,  कदम कदम पर उनका अपमान  होता है। नई पीढ़ी उनको बोझ समझती है। वे बुजुर्गों के अनुभवों का लाभ उठाने के बजाय उनका अपमान ही करती नजर आती है। लगता है कि बहुत कम लोगों को पता है कि भारत सरकार ने बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए माता पिता वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल एवं कल्याण अधिनियम बनाया है। इस कानून के तहत बुजुर्गों का परित्याग और उनका उत्पीड़न करना दंडनीय अपराध है। इस अपराध के लिए तीन महीने की कैद और पांच हजार जुर्माना का प्रावधान है। यह कानून संतानों और परिजनों पर कानूनी जिम्मेदारी डालता है ताकि वे अपने माता पिता और बुजुर्गों को सम्मान के साथ सामान्य जीवन बसर करने दे। इसके बावजूद बुजुर्गों की हालत  दिनों दिन खराब होती जा रही है।

अपने देश में इस समय बुजुर्गों की संख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 10 करोड़ 38 लाख है। एक अन्य अध्ययन के मुताबिक 2026 तक इनकी संख्या कुल आबादी में 17 करोड़ से अधिक हो जाने की संभावना है। बुजुर्गों कि बढ़ती आबादी के कारण उनके बीच कई तरह की समस्याएं पैदा हो गई है। अभी हाल में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से बुजुर्गों की आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से कराए गए एक शोध के मुताबिक आज देश में हरेक दसवां व्यक्ति बुजुर्ग है। हरेक चार में से तीन बुजुर्ग किसी न किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त है। हर चौथा बुजुर्ग एक से ज्यादा बीमारियों का शिकार है और हर पांचवां बुजुर्ग मानसिक बीमारी से परेशान है। इस तरह हमारे बुजुर्ग बीमारी और उससे मुक्ति के लिए पर्याप्त उपचार की व्यवस्था नहीं होने  के अलावा और भी बहुत सी मुश्किलों से घिरे हुए हैं। नतीजा यह है कि हमारे बुजुर्ग अवसाद के शिकार हो रहे हैं। फिर उनको अपनी जिंदगी बेकार ही लगने लगती है। वेलेंटाइन डे आदि हम जिस उत्साह से मनाते हैं। बुजुर्ग दिवस तो हम मनाते ही नहीं।  मतलब हम उनके प्रति बेफिक्र ही रहते हैं। उनकी पीड़ा हमें झकझोरती ही नहीं। देश में अवसाद से शिकार होने वाले बुजुर्गों की संख्या में कमी आने के बजाय बढ़ोतरी ही हो रही है क्योंकि उनकी देखभाल के लिए सरकार और समाज दोनों पूरी तरह से उदासीन हैं।

केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत के मुताबिक 2014 से बुजुर्गों के कल्याण के लिए विभाग द्वारा एक कार्य नीति तैयार की गई है। उसके मुताबिक बुजुर्गों के लिए आश्रम बनाने के साथ उनके कल्याण के लिए विभिन्न योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। वयोश्री योजना के तहत बुजुर्गों को सुनने वाले मशीन,व्हील चेयर,आरामदायक जूते,बैसाखी,कृत्रिम दांत और चश्मे आदि दिए जा रहे हैं। इनके अलावा वय वंदन योजना,इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धा पेंशन योजना, स्वाबलंबन योजना और अटल पेंशन योजना भी संचालित की जा रही है लेकिन ये योजनाएं ऊंट के मुंह में जीरे के समान हैं।

यह बहुत चिंता की बात है कि अब बुजुर्गों पर उनकी संतानें ही जुल्म ढाने लगी हैं। जो माता पिता अपने जिन बच्चों को पढ़ा लिखा कर योग्य बनाते हैं वहीं उनकी धन सम्पत्ति हथियाने के लिए उनके दुश्मन बनने लगे हैं। संतानें संपत्ति के लिए उन पर अत्याचार करने, उन्हें घर से निकालने और उनकी हत्या तक करने लग गए हैं। आए दिन पीड़ित माता पिता पुलिस थाने  के चक्कर लगाने को विवश हो गए है। जनवरी के अंतिम सप्ताह से फरवरी के पहले सप्ताह के बीच राजस्थान के अलवर में,उत्तर प्रदेश के झांसी और उन्नाव में बेटों ने अपने मां बाप को घर से निकाल दिया। झारखंड के सिंहभूम जिले में एक बेटे ने संपत्ति के खातिर अपनी मां की पीट पीट कर हत्या कर दी। ऐसे ही उत्तर प्रदेश के गोंडा में बेटे ने पैसे नहीं देने पर पिता की हत्या कर दी। मध्य प्रदेश के बीना जिले में बेटे ने पैसे नहीं देने पर अपनी मां को लात जूतों से पीटा फिर उसका गला दबाने का प्रयास किया। इससे आहत होकर मां ने चूहे मारने की दवा खा कर आत्महत्या करने की कोशिश की। उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में बेटे ने पीट पीट कर अपने पिता और मां की हत्या कर दी। अपने ही बनाए घर से मां बाप को निकालने और उनकी हत्या कर देने की घटनाएं अब काफी बढ़ गई हैं। अभी दो दिन पहले 15 फरवरी को राजस्थान के उदयपुर जिले के रोबिया गांव में पुलिस ने एक बुजुर्ग की लाश बरामद की। पुलिस ने खुलासा किया कि बुजुर्ग की हत्या किसी विवाद के कारण उनके दो बेटों ने की थी। अदालतों में मामले बाघ रहे हैं।

बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए माता पिता और वरिष्ठ नागरिक देखभाल और कल्याण अधिनियम 2007 बना ही है, इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में राज्य सरकार ने 2002 में बुजुर्ग माता पिता और आश्रित भरण पोषण कानून बनाया था। इस दिशा में सबसे ज्यादा प्रभावी कार्रवाई महाराष्ट्र में अहमदनगर और लातूर की जिला परिषदों ने की है। यहां इन परिषदों ने बुजुर्ग माता पिता की देखभाल नहीं करने वाले कर्मचारियों के विरुद्ध रवैया  अपनाते हुए उनके वेतन से 30 प्रतिशत राशि काट कर उनके माता पिता के अकाउंट में भेजने का फैसला किया है। लातूर जिला परिषद ने अपने 7 कर्मचारियों के जनवरी के वेतन में से 30 प्रतिशत राशि काट कर उनके माता पिता के बैंक खातों में भेज दिया। उत्तर प्रदेश सरकार भी माता पिता के साथ दुर्व्यवहार करने वाली संतानों को संपत्ति से बेदखल करने का कानून बनाने जा रही है। सरकार ने  कानून बना कर बुजुर्गों को सुरक्षा देने की कोशिश की है लेकिन यह सिर्फ अकेले कानून के सहारे नहीं होगा। इसके लिए समाज और परिवार को भी सच्चे मन से संवेदनशील होना होगा।

 

©हेमलता म्हस्के, पुणे, महाराष्ट्र

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