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सचिन पायलट की फ्लाईट क्रेश, गहलोत का चल गया जादू …

नई दिल्ली (संदीप सोनवलकर) । सचिन पायलट भले ही असल में पायलट रहे राजेश पायलट के बेटे है लेकिन राजनीति की उडान का उनका अनुभव कमजोर निकला और राजस्थान मे अशोक गहलोत की सरकार गिराने का उनका दांव फेल होता नजर आ रहा है।

असल में सचिन अपनी ताकत को ओवरऐस्टीमेट कर गये और गणित को भूल गये। आखिर कांग्रेस ने सचिन को अधयक्ष पद और उपमुख्यमंत्री पद से हटा दिया। बाकी दो और मंत्री भी हटाये गये। संदेश साफ है कि कांग्रेस इसे सहन नहीं करेगी। कांग्रेस को ये संदेश देना जरुरी था वरना कई और जगह भी ये प्रथा चल निकलती।

राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार के पास कांग्रेस के 107 और 13 निर्दलीय विधायकों का समर्थन है। इस तरह उनके पास कुल मिलाकर 120 विधायकों का समर्थन है। अगर सचिन अपने दावे के अनुसार 20 विधायकों को कांग्रेस से तोड भी लेते हैं तब भी सरकार नहीं गिरेगी। तब कांग्रेस के पास 87 विधायक रहेंगे। सारे निर्दलीय किसी भी हालत मे बीजेपी के पास नहीं जाएंगे क्योंकि 7 तो अशोक गहलोत की मदद से ही जीतें हैं।

बीजेपी के पास केवल 72 विधायक है। बाकी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 2, भारतीय ट्राइबल पार्टी 2, राष्ट्रीय लोक दल 1 और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के तीन विधायक है।

इस तरह बीजेपी का गणित किसी भी तरह नहीं बैठ रहा है। अब कांग्रेस चाहे तो दलबदल के आरोप में सचिन के साथ कथित तौर पर गये सारे 20 विधायकों को अयोग्य भी घोषित करार दे सकती है। ऐसे में सदन का बहुमत का आंकडा घट जाएगा और गहलोत सरकार बची रहेगी।

असल में राजस्थान की राजनिती को जानने वाले कहते हैं कि सचिन गुर्जर है और उनका राजस्थान में वोट बैंक बहुत कम है। इसलिए सचिन को कोई सीएम नहीं बनने देना चाहता। जब तक कि दिल्ली से कांग्रेस हाईकमान साथ ना दे। ऊपर से बीजेपी नेता वसुंधरा राजे कभी नहीं चाहेंगी कि सचिन बीजेपी मे आएं क्योंकि तब वो वसुंधरा के बेटे दुष्यंत के लिए ही खतरा बन जाएंगे। ऐसे में सचिन की राह सिंधिंया की तरह नहीं है ना ही राजस्थान का गणित मध्यप्रदेश की तरह है।

एक बात और अंदरखाने सामने आ रही है कि सचिन ने हाल ही में राज्यसभा चुनाव के समय भी कांग्रेस उम्मीदवार नीरज डांगी को हरवाने की कोशिश की थी लेकिन दांव नहीं चला। पर गहलोत कांग्रेस आलाकमान को ये समझाने में कामयाब हो गये कि सचिन कभी भी बगावत कर सकता है इसलिए ऊपर से कुछ भी दिख रहा हो लेकिन इतना तय है कि सचिन को एक हद से ज्यादा नहीं मनाया जाएगा। गहलोत पहले ही सोनिया और राहुल दोनों कैंप के करीबी हैं इसलिए राहुल खुलकर सचिन के समर्थन में नहीं आ सकते।

असल में जब 2018 में चुनाव के बाद भी सचिन ने सीएम पद का दावा किया था तब राहुल गांधी और सोनिया गांधी के सामने ही कांग्रेस का एक अंदरूनी सर्वे रख दिया गया था जिसमें सचिन के साथ केवल 9 प्रतिशत कांग्रेसी विधायक थे जबकि गहलोत के साथ 46 फीसदी। इस तरह तभी साफ हो गया था कि सचिन को फिलहाल जूनियर ही रहना होगा।

जानकार ये भी कहते हैं कि सचिन अब रुकना नहीं चाहते क्योंकि उनको राहुल गांधी से कोई उम्मीद नहीं है। उनको लगता है कि राहुल गांधी खुद ही कमजोर हैं ऐसे मे उनका कांग्रेस में कोई भविषय नहीं है। यही जल्दबाजी और निराशा दोनों सचिन के लिए मुश्किल बन गई है।

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