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मुक्त नहीं कर पाई …

स्मृतियों में

तेरी छवि माँ,

मुक्त नहीं कर

पाई।

मन में अब तक

बसी हुई हैं

आँखों की

गहराई।

 

जब जब डूबी

कश्ती मेरी

तुमने साथ

दिया।

जब जब मैं

भटकी हूँ पथ से

तुमने हाथ

दिया।

माँ तुम मेरी

हिम्मत बनकर

सच की राह

दिखाई।।

 

प्रश्नों के वीहण

अनुत्तरित

अंतर द्वंद छिड़ा

मानस में।

भीतर मेरे

तू ही तू है

माँ मेरे तन की

नस नस में।

 

माँ तुम थीं तो

चैन की बंसी

बजती थी शहनाई।।

प्रश्नों के वीहण

अनुत्तरित।

अंतर द्वंद्व

मानस में।

भीतर मेरे तुम ही

तुम हो माँ मेरी

नस नस में।

 

@अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता

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