लेखक की कलम से
विडंबना …
ऊँची-ऊँची इमारतें बनाने वाला देखो
स्वयं तो फुटपाथ पर ही रात बिताता है
भूख-प्यास से लड़ता है ये हर दिन
नहीं मेहनत से फिर भी कभी घबराता है
दूसरों के घर बनाने बाला ये, अक्सर
खुद देखो बेघर ही रह जाता है
मजदूर कहलाने वाला यह शख्स ही
इन धन-कुबेरों का कारोबार चलाता है
फिर भी नहीं आता कभी अवसाद में ये
हर परिस्थिति से बस लड़ता जाता है
कारीगरी का ये जादूगर ना जानें क्यों
बस मजदूर ही होकर रह जाता है ???
©अनुपम अहलावत, सेक्टर-48 नोएडा