लेखक की कलम से
कलयुगी -चक्रव्यूह …
मैं जिंदगी भूमि पर
उतरतीं हूँ हर रोज़
शब्दों और विचारों के
तीक्ष्ण -बाण लेकर
बेमाने हो जाते मेरे
सच्चे शब्द, उन्मुक्त विचार
अर्जुन ने चढ़ा ली प्रत्यंचा
समय धनुष पर झूठ की
कौरवों से कर लिया सौदा
खुद युधिष्ठर ने द्रोपदी का
धृतराष्ट्र ही नहीं है अन्धा
गांधारी हो गया पूरा समाज
कलयुग के युद्ध -रथ को
नहीं मिला कोई सारथी
और मेरे विचारों के तीर
भेद नहीं पाते कलयुगी -चक्रव्यूह ||
©डॉ. दलजीत कौर, चंडीगढ़