लेखक की कलम से

पूरे देश को जोडती है हिंदी …

1947 को जब देश को आजादी मिली तब भाषा की बड़ी चिंता खड़ी हुई। हमारा भारत एक विशाल देश है, जहां विविध संस्कृतियां हैं, सैकड़ों भाषाएं बोली जाती हैं, और हजारों बोलियां भी हैं। हर राज्य की अनेक मातृभाषा है। ऐसे विशाल देश को आजादी के बाद निवास करने वाले असंख्य भाषाई, सांस्कृतिक और धार्मिक समूह को एक साथ मिलाने का प्रयास भारत की नव – निर्माण सरकार कर रही थी। जब कि हमारे देश के पास स्वयं की कोई राष्ट्रीय भाषा ही नहीं थी। इसलिए प्रशासन द्वारा हिंदी ही हमारी राजभाषा हो सकती है यह जानकर 14 सिंतबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिंदी ही हमारी राजभाषा होगी।

इस निर्णय के बाद हिंदी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर 1953 से पूरे भारत में हर साल 14 सिंतबर को हिंदी दिवस मनाया जाने लगा। हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी दुनिया भर में हमें सम्मान दिलाती है। पूरे विश्व में सबसे बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओं से हिंदी भाषा तीसरे क्रमांक पर है। हिंदी भाषा हमारी राष्ट्रीय भाषा ही नहीं बल्कि अभिमान का प्रतीक है। सब से लचीली और सरल हिंदी भाषा हमें भावनात्मक एकता के सूत्र में पिरोती है।

आम जनता से जुड़ी हिंदी भाषा पूरे भारत देश को बांधती आई है परंतु हिंदी भाषा का दुर्भाग्य यही है कि इसे ज्यादा बोलने के बावजूद भी इस भाषा को अपने ही देश में हीन भावनाओं से देखा जाता है, और अंग्रेजी बोलने वालों को आधुनिक कहा जाता है।

इतनी सुंदर समृद्ध हिंदी भाषा का हिंदी दिवस मनाना बेहद जरुरी है, ताकि लोगों को यह एहसास हो और याद रहे कि हिंदी हमारी राजभाषा है। जब तक हम पूरी तरह से हिंदी को आत्मसात नहीं करते उसे सन्मान की नजर से नहीं देखते तब तक हमारी राष्ट्रभाषा का विकास नहीं हो पाएगा।

 

 

    ©हेमलता म्हस्के, पुणे, महाराष्ट्र                

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