लेखक की कलम से
कद और सिंहासन ..
छोटे क़द के लोग बड़े हैं
इसी बात के तो झगड़े हैं
उनकी माया वो ही जानें
शिखरों पर जो लोग चढ़े हैं
मैं कहता ये नहीं सार्थक
लेकिन ज़िद पर, आप अड़े हैं
खिसक रही हैं धीरे -धीरे
जिन नीवों पर महल खड़े हैं
वे कहते हैं बात अमन की
ख़ून सने जिनके जबड़े हैं
खींच न ये अक्षांश रेखाएँ
हम ने भी भूगोल पढ़े हैं
कैसे छूँटे, इन से बन्धु
ये सिंहासन रतन जढ़े है
उन के ही, पैने नाखून
खून सने, जिनके जबड़े हैं
©कृष्ण बक्षी