लेखक की कलम से
चूल्हे पर …
तुम्हारे ताज़े हैं जख्म
मेरे तो पुराने हैं घाव के निशान
सुन लो,
भूखे बच्चों के खातिर
पत्थरों को उबालने बैठी माँ!
तुम्हारी ही तरह
जलते चूल्हे की आंच पर
खुद सिझती
एक माँ मेरी भी थी!
वो मन ही मन
भगवान से मन्नत मांगती थी
कि चूल्हे पर बर्तन में
उबालने रखा जो पत्थर है
वो चावल बन जाए!
और मुझे रात भर सुनाती थी
पत्थर सोना बनने वाली
एक कहानी
ताकी मुझे भी
जल्दी से नींद आ जाए!
©मीरा मेघमाला, कर्नाटक