लेखक की कलम से

तीर ए मोहब्बत…

उड़ रहा था दिल मेरा परिंदों जैसा

तेरी मोहब्बत का तीर कुछ ऐसा लगा

घाव तो मिला मरहम न लगा

सनम तेरे जैसा दुश्मन न लगा

तेरे नाम की दीवानगी से इनकार नहीं

कुसूर तेरी मुस्कान का है हम गुनहगार

कुछ जिद जो तुम्हारी बेमानी हैं

जानम हमने भी हार कब मानी है

कर ही लेगें वश में तुमको

तुमसे ही तो ये जिन्दगानी है।

©ममता गर्ग, ठाकुरगंज, लखनऊ, उत्तरप्रदेश

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button