लेखक की कलम से

अभी तो मैं जवान हूं ..

(व्यंग्य)

उम्र के लिहाज से हम। 55 पार कर चुके हैं। बेवफा दांत होने। बगावत कर दी है।

हर तीसरे महीने। चश्मे का नंबर भी बदलता है।

महुआ कमर दर्द भी। तकलीफ दे बन गया।

बस वैद्य जी तक जाने की। सुस्ती!

यूं तो हर दफ्तर में हम कॉमेडी केंद्र कहलाते हैं।

मगर घर की दहलीज पार करते ही। हमारी सिटी पीटी गुम हो जाती है। वैसे भी हम शुरू से। दब्बू किस्म के प्राणी रहे हैं।

हम दो भाई हैं छोटू और बड़कू

उसकी एंट्री! स्टेज पर 5 मिनट पहले। और मैं 5 मिनट बाद यानी छोटू!

पूरे मोहल्ले में। मेरी शराफत के चर्चे थे। और वह गुंडागर्दी में अव्वल नंबर पर।

शरारत बड़कू करता। और

पिटता मैं!!

यह पिछले पटाने की क्रिया! कई साल चली।

एक बार का वाक्य है मैं आदम कद आईने के सामने खड़ा। कंघी करते गुन गुना रहा था।

अभी तो मैं जवान हूं।

क्या देखता हूं पीछे खड़ी पत्नी? फुल फुल पेट पकड़।

हंस रही है __

हम अपनी झेंप मिटाने

बालकनी में आ गए।

क्या देखते हैं कि हमारी?

पढ़ो संगीता। धूप में अपने।

बाल सुखा रही है।

उसकी टपकती लटें /

हमारे दिल पर सांप लोटने लगा। हम गुन गुना उठे ___

गंगा से तुम आओ नहा कर। कैश सुखाओ बांह फैलाकर)

तभी हमारी पत्नी ने आतंकवादी की तरह। हमारी पीठ पर। धौल जमाया —

क्यों जी घर की गंगा से मन भर गया जो बाहर नहाने चले?

हम शर्म से पानी पानी हो गए। लगा जैसे नया-नया चोर। चोरी करते पकड़ा गया हो।

हम मन ही मन सोच रहे हैं। कल तक तो हम 55 के थे, आज क्यों सठिया गए हैं?

दोस्तों मेरा यह। व्यंग्य।

मन भाया हो तो

थालीपीठ कर आशीर्वाद दें।

मेहरबानी!

 

© मीना हिंगोरानी, नई दिल्ली

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