लेखक की कलम से

हमेशा मतलब से ही मिलती हो …

हमेशा मतलब से ही मिलती हो (ऐ जिन्दगी )

       कभी तो यूं बेवजह भी मिला करो

दो पल तो बैठो करीब आकर मेरे

        भले ही शिकवा करो, गिला करो

शायद कुछ सुकून मिले दिल को

        शुरू एकबार तो ये सिलसिला करो

मैं बहुत दूर निकल चुकी हूं खुद से

      मिलने का मुझसे कभी तो फैसला करो

गैरों की खातिर टूटने से बेहतर है

    खुद की खातिर बदलने का हौसला करो

यूं टूटकर बिखरने का

    खत्म अब सिलसिला करो

अगर रास आ गये हैं फासले उसे

     तो छोड़ दो तुम भी ना कोई अब गिला करो……

©अनुपम अहलावत, सेक्टर-48 नोएडा      

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