वो मिलन की रातें ….
मिलन की बात ऐसी हो,
कि दिल से दिल ही मिल जाये।
जो तू हँस दे तो,
जीवन बस गुलज़ार हो जाये।
मैं क्या बोलू कि,
तेरा मेरा मिलन हो ऐसा,
जो दर्द तुझको हो,
अश्क मेरे बह जाए।
तेरा मेरा ये इश्क भी ऐसा हो,
दूर कितने भी हम तुम हो,
मिलन कुछ यूं हो जाये,
रूह से रूह का नाता,बस मेरे हमदम हो जाये।
जो तू कह दे वो बातें भी,
बस मुझ तक पहुंच जाए,
दिल से दिल का नाता,
बस ऐसा हो जाये।
खामोशियों में भी,
कुछ बातें हो जाये,
मिलन ये ऐसा अद्भुत हो,
हम बस एक हो जाये।
कांटे हो या फूल हो,
संग संग दोनों मुस्काये,
जिंदगी के हर गीत,
हम संग संग ही गाये।
जो मैं न चल पाऊं,
तो मेरे पग तू बन जाये,
जो तू कभी लड़खडा़ये,
सहारा मैं बन जाऊं।
चल चलते है जीने को,
वो मिलन की रातें,
जो तू हँसना कभी भूले,
मैं हँसना सिखा जाऊं।
गमों के लाख दीवारें,
हम तुम न टूटेंगे,
संग संग जो हम चले,
गम के पर्वत टूटेंगे।
चल फिर कर मिलन ऐसा,
कि हम एक हो जाये,
न तू रूठे,न हम रूठे,
बात कुछ यूं हो जाये।।
©अरुणिमा बहादुर खरे, प्रयागराज, यूपी