लेखक की कलम से
जीवनबोध …
डर रहा और
नहीं भी
टूटने का डर
कभी तोड़ दिये
जाने का डर
संदेह रहा खुद पर
कभी विश्वास भी
भूलने की कोशिश में
सहेजती भी रही स्मृतियाँ
अजीब रहा सब कुछ
आधे भरे गिलास सी
आशा और निराशा के
पैमाने पर तौलती रही
भरी आँखों में छिपाती
रही मन का खालीपन
तलाश नहीं की कभी सुख की
सुख, दुख, मिलना, बिछड़ना
रिश्ते नाते शब्द हैं केवल शब्द
देखते,सुनते, समझते शरीर
छूट जाते हैं पीछे एक दिन
क्या कहोगे इसे तुम
जीवनबोध या मृत्युबोध ….
©सीमा गुप्ता, पंचकूला, हरियाणा