लो मेरा सम्मान करो …
किसने ,कितना ,क्या ,लिखा?
लिखा भी होगा,तो कहाँ दिखा?
अब तो मानों सम्मान के लिए,
कल -कारखाने खुल गया हैं।
कौन ,किसका सम्मान कर रहे हैं,
सम्मान देने वाला भूल गया है,,
किसी ने बताया कि वो एक साल में,
तीन सौ सत्तर सम्मान पाया है।
साथ मे काव्य प्रकाशन का
अद्भुत सौभाग्य पाया है।।
उनकी हैसियत देखकर ,
मैं दंग रह जाता हूँ।
लोग हजारों इनाम ले रहे हैं,
मैं एक को तरस जाता हूँ–
वह दिन बीत गया जब,
अपनी पहचान बनाने के लिए,
वर्षों बीत जाता था।
एक सम्मान पाने की चाह लिए,
वो जग से ही बीत जाता था।
कहीं एक सम्मान मिल जाता तो,
वो विश्व विजेता सा,
असीम सुख पाता था–
पर अब तो सम्मान लेना देना,
मानों कोई छद्म धंधा है।।
देने और दिलाने वाले,
एक नहीं हजारों बंदा है।
अब तो सम्मान पत्र ,
थोक भाव में छपता है।
सच कहूँ तो,ये सम्मान,
बाजार में खुलेआम बिकता है।।
जिनकी जैसी औकात हो,
मनमाफिक सम्मान पा लो।
मर्जी अनुसार समाचार पत्र में,
अपनी खबर छपवा लो —
यह सब कुछ देखकर,
भला मैं चुप कैसे रहूँ।
अपने मन की बात आखिर ,
कहूँ तो, किससे ,कहूँ ?
विज्ञापन के इस दौर में,
सत्यता की गारंटी नहीं मिलता,
क्योंकि सच लिखने वाले को,
कभी कोई सम्मान नहीं मिलता।।
फिर भला मैं, किस मुँह से ,
किस ,किसको यह बात कहूँ,
लो मेरा सम्मान करो—–
©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)