लेखक की कलम से
धैर्या …
मेरे नामो में मेरा स्रर्वप्रिय…
धैर्या ही तो था…
अब मै धैर्या नहीं…
बदल रही हूँ…
यह नाम कल से…
कल क्यों ???
आज से ही…
नाम का हमारे व्यक्तित्व पर
पूर्ण नहीं पर…
कुछ प्रभाव तो पडता ही है…
सहनीय, असहनीय सब….
सहा ही तो है…
शायद यह नाम का ही…
प्रभाव था…
नहीं तो, मन ने तो…
कई मरतबा…
चींख-चींख कर कहा…
मरना नहीं जीना है मुझे जीना!!!!
बोल धैर्या बोल…
नहीं तो नाम बदल अपना…
मैं मर रहा हूँ…
मेरा तो ख्याल कर…
मेरे बिना भी तू…
स्वयं को जीवित मानती है…
हद… है…
जा…बन…बुत…. !!!
©सुधा भारद्वाज, विकासनगर, उत्तराखंड