बुद्धिजीवी, संस्कृतिकर्मी व लेखक संगठन के सदस्यों ने 19 दिसंबर के राष्ट्रीय प्रतिवाद में शांतिपूर्ण सहभागिता की अपील की
बिलासपुर। लेखक, बुद्धिजीवी, संस्कृतिकर्मी व लेखक संगठनों के सदस्यों ने 19 दिसम्बर को होने वाले राष्ट्रीय प्रतिवाद के साथ अपनी एकजुटता के लिए देश के सभी नागरिकों से प्रस्तावित एनआरसी के खिलाफ आंदोलनों में शान्तिपूर्ण ढंग से शामिल होने का आह्वान किया है। छत्तीसगढ़ के लेखक संगठनों के संयुक्त बयान में उक्ताशय की बात कही गयी है। इसमें प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस), जनवादी लेखक संघ (जलेस), जन संस्कृति मंच (जसम) भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) साझा सांस्कृतिक मोर्चा और एप्सो की छत्तीसगढ़ इकाइयों की ओर से संयुक्त रूप से बयान जारी किया गया है।
संयुक्त बयान में कहा गया है कि केंद्र सरकार द्वारा लाये गए नागरिकता संशोधन कानून और पूरे देश के पैमाने पर लागू किये जाने हेतु प्रस्तावित एनआरसी के खिलाफ देश भर के लोकतांत्रिक, अमनपसंद और संविधान में आस्था रखने वाले आम नागरिकों का प्रतिवाद शुरू हो गया है। उत्तर पूर्व से शुरू हुआ यह प्रतिवाद पूरे देश मे फैल चुका है। दिल्ली में जामिया मिलिया, जेएनयू, दिल्ली विवि, जाधवपुर, उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ मुस्लिम विवि, बीएचयू, लखनऊ व इलाहाबाद विवि समेत पूरे देश के छात्र युवा आज सड़कों पर हैं।
इन प्रतिवादों की अनुगूंजों को सुनने की बजाय केंद्र सरकार इस आंदोलन को सांप्रदायिक रूप देने, भीषण दमन करने पर उतारू है। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम विवि में पुलिस द्वारा जानबूझ कर हिंसा को उत्प्रेरित किया गया। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने पूरे प्रदेश में धारा 144 लगा कर विरोध की आवाजों को चुप कराने का रास्ता निकाला है। जिस तरह कुछ दलों ने संसद में अनुपस्थित रहकर नागरिकता संशोधन विधेयक को पारित करने में सहयोग किया और अब चुनावी राजनीति की मजबूरियों को देखते हुए जामिया में छात्रों के दमन का विरोध कर रहे हैं, वह एक अक्षम्य राजनैतिक अवसरवाद ही है । देश की जनता इस अंधेरे समय मे किए गए इस विश्वासघात को कभी नहीं भूलेगी।
जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के लोकतांत्रिक प्रतिरोध का दिल्ली पुलिस द्वारा बर्बर दमन देश को गृहयुद्ध की आग में झोंकने की सोची- समझी साजिश हो सकती है। छात्र-नौजवानों के वेश में पुलिस वालों को उपद्रव करते तथा पुलिस बलों को मोटर साइकिल तोड़ते व बस में आग लगाते भी देखा गया। बिना विवि प्रशासन की इजाजत पुलिस का पुस्तकालय और बाथरुम में घुसकर असहाय व निरीह छात्रों के साथ मारपीट करना, हाथ उठवा कर उनकी परेड कराना, उन्हें पुलिसिया लाठी चार्ज, आंसू गैस और पत्थरबाजी के बीच आने को मजबूर करना व बीबीसी समेत वहां मौजूद अनेक मीडियाकर्मियों के कैमरे और फोन छीन लेना तथा उनके साथ भी मारपीट करना – ऐसे भयावह दृश्य लोकतंत्र का माखौल उड़ाना ही है । जाहिर है, पुलिस सच्चाई को सामने आने देना नहीं चाहती।
इन घटनाओं का एक ही मतलब है। संघ -बीजेपी परिवार भावनाओं को उकसाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो गए हैं। इस मकसद के लिए वे सरकार की हर मशीनरी का अनुचित इस्तेमाल करने के लिए भी तत्पर हैं। संघ-बीजेपी ने समझ लिया है कि कृषि, उद्योग, रोजगार और शिक्षा की तेजी से बिगड़ती सूरत को संभालना उसके बस की बात नहीं है । अब केवल हिंदुत्व ही उसे चुनावी जीत दिला सकता है। ऐसे में वह गृहयुद्ध की लपट तेज करना चाहती है, ताकि धर्म के नाम पर वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके।
यह अच्छी बात है कि नौजवानों ने इस खेल को पहचान लिया है। जामिया घटना की रात से दिल्ली के पुलिस मुख्यालय समेत देश भर में हो रहे प्रदर्शनों में हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, किसान, मजदूर, छात्र, शिक्षक व नागरिक समाज एकजुट होकर संविधान की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं। नागरिकता संशोधन कानून को रद्द कराना तथा जामिया और अलीगढ़ सहित देश भर में हुए पुलिस दमन की जांच कराना उनकी प्रमुख मांग है। ये दोनों मांगे संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए अनिवार्य हैं।