मध्य प्रदेश

ह्रदय रोग विशेषज्ञों ने मंत्रालय में सीपीआर का प्रशिक्षण दिया गया

भोपाल। मंत्रालय के सुरक्षा कार्य में संलग्न अधिकारियों एवं कर्मचारियों को आज शनिवार को सीपीआर के संबंध में प्रशिक्षण दिया गया। सीपीआर एक महत्वपूर्ण प्रारंभिक उपचार प्रक्रिया है, जिसमें कार्डियल अरेस्ट या दिल का दौरा आने पर पीड़ित व्यक्ति को तत्काल राहत एवं जीवन बचाने में मदद मिल सकती है। ह्रदय रोग विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा किसी व्यक्ति को दिल का आकस्मिक दौरा पड़ने पर व्यक्ति की जान किस तरह बचाई जा सकती है, इस संबंध में प्रशिक्षण दिया गया। यह जानकारी मुख्य सुरक्षा अधिकारी मंत्रालय अविनाश शर्मा ने दी।

क्या है सीपीआर

सीपीआर का मतलब है कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन। यह भी एक तरह की प्राथमिक चिकित्सा यानी फर्स्ट एड है। जब किसी पीड़ित को सांस लेने में दिक्कत हो या फिर वो सांस न ले पा रहा हो और  बेहोश जो जाए तो सीपीआर से उसकी जान बचाई जा सकती है। बिजली का झटका लगने पर, पानी में डूबने पर और दम घुटने पर सीपीआर से पीड़ित को आराम पहुंचाया जा सकता है। हार्ट अटैक यानी दिल का दौरा पड़ने पर तो सबसे पहले और समय पर सीपीआर दे दिया जाय तो पीड़ित की जान बचाने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।

अगर किसी पीड़ित को दिल का दौरा पड़ जाय तो सबसे महत्वपूर्ण है कि प्राथमिक चिकित्सा देने वाला व्यक्ति खुद ना घबराए और पूरा धैर्य रखे। किसी भी तरह की फर्स्ट एड देने से पहले एंबुलेंस को कॉल करे या फिर हॉस्पिटल को सूचित करे की आप बहुत ही कम समय में हार्ट अटैक के मरीज को लेकर वहां पहुंचने वाले हैं।

पीड़ित के हाल की जांच तुरंत करें। ये देखने की कोशिश करें कि मरीज होश में है कि नहीं। उसकी सांस चल रही है कि नहीं। अगर उसकी सांस चल रही है तो मरीज को आराम से बिठायें और उसे रिलैक्स  कराएं। मरीज के कपड़ो को ढीला कर दे। अगर मरीज को पहले से ही हार्ट की समस्या है और वो कोई दवाएं लेता हो, तो पहले उसे वही दवा दें जो वो लेता रहा है।

यदि मरीज को होश नहीं आ रहा हो, उसके दिल की धड़कने बंद हो गयी हो या साँस नहीं चल रही हो तो सीपीआर प्रक्रिया अपनाएं।

कैसे देते हैं सीपीआर

सीपीआर क्रिया करने में सबसे पहले पीड़ित को किसी ठोस जगह पर लिटा दिया जाता है और प्राथमिक उपचार देने वाला व्यक्ति उसके पास घुटनों के बल बैठ जाता है।

उसकी नाक और गला चेक कर ये सुनिश्चित किया जाता है कि उसे सांस लेने में कोई रुकावट तो नहीं है। जीभ अगर पलट गयी है तो उसे सही जगह पर उंगलियों के सहारे लाया जाता है।

सीपीआर में मुख्य रुप से दो काम किए जाते हैं। पहला छाती को दबाना और दूसरा मुँह से सांस देना जिसे माउथ टु माउथ रेस्पिरेशन कहते हैं। पहली प्रक्रिया में पीड़ित के सीने के बीचोबीच हथेली रखकर पंपिंग करते हुए दबाया जाता है। एक से दो बार ऐसा करने से धड़कनें फिर से शुरू हो जाएंगी। पंपिंग करते समय दूसरे हाथ को पहले हाथ के ऊपर रख कर उंगलियो से बांध लें अपने हाथ और कोहनी को सीधा रखें।

अगर पम्पिंग करने से भी सांस नहीं आती और धड़कने शुरू नहीं होतीं तो पम्पिंग के साथ मरीज को कृत्रिम सांस देने की कोशिश की जाती है।

ऐसा करने के लिए हथेली से छाती को 1-2 इंच दबाएं, ऐसा प्रति मिनट में 100 बार करें। सीपीआर में दबाव और कृत्रिम सांस का एक खास अनुपात होता है। 30 बार छाती पर दबाव बनाया जाता है तो दो बार कृत्रिम साँस दी जाती है। छाती पर दबाव और कृत्रिम साँस देने का अनुपात 30:02 का होना चाहिए। कृत्रिम सांस देते समय मरीज की नाक को दो उंगलियों से दबाकर मुंह से साँस दी जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि नाक बंद होने पर ही मुंह से दी गयी सांस फेफड़ों तक पहुंच पाती है।

सांस देते समय ये ध्यान रखना है कि फर्स्ट एड देने वाला व्यक्ति लंबी सांस लेकर मरीज के मुंह से मुंह चिपकाए और धीरे धीरे सांस छोड़ें। ऐसा करने से मरीज के फेफड़ों में हवा भर जाएगी। इस प्रक्रिया में इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि जब कृत्रिम सांस दी जा रही है तो मरीज की छाती ऊपर नीचे हो रही है या नहीं। ये प्रक्रिया तब तक चलने देनी है जब तक पीड़ित खुद से सांस न लेने लगे। जब मरीज खुद से साँस लेने लगे, तब ये प्रकिया रोकनी होती है।

सीपीआर अगर किसी बच्चे को देनी है तो विधि में थोड़ा सा बदलाव होता है। बच्चों की हड्डियों की शक्ति बहुत कम होती है इसलिए दबाव का विशेष ध्यान रखा जाता है। अगर 1 साल से कम बच्चों के लिए सीपीआर देना हो तो सीपीआर देते वक़्त ध्यान रखे 2 या 3 उंगलियों से ही छाती पर दबाव डालें और छाती पर दबाव और कृत्रिम सांस देंने का अनुपात 30:02 ही रखें।

सीपीआर 10 है विकसित तकनीक

सीपीआर से भी नई तकनीक सीपीआर 10 आज देश में उपलब्ध है। इस तकनीक का अविष्कार भारत में ही किया गया है। भारत के ही डाक्टर पद्मश्री डॉक्टर के.के अग्रवाल ने इस तकनीक का आविष्कार किया है। ये तकनीक परंपरागत सीपीआर से कहीं ज्यादा प्रभावी और व्यवहारिक मानी जाती है। इस तकनीक की सबसे खास बात ये है कि इसमें मुंह से कृत्रिम सांस देने के बजाय सिर्फ उंगलियों के दबाव के माध्यम से सीपीआर दिया जाता है।

इस प्रक्रिया को दिल का दौरा पड़ने के पहले 10 मिनट में ही किया जाता है। इस प्रक्रिया में हाथ से इस तरह से छाती पर दबाव बनाया जाता है कि दिल सीने की हड्डियों और रीढ़ की हड्डी के बीच दबे। ये तबतक किया जाता है जब तक चिकित्सकीय सुविधा न मिल जाय या फिर व्यक्ति जिंदा हो जाय या फिर इलेक्ट्रिक शॉक देने वाले यंत्र तक पीड़ित पहुंच न जाय।

इसके लिए सिर्फ छाती पर दबाव बनाना है पर ये 100 दबाव प्रति मिनट की रफ्तार से करना होता है। दबाव बनाने के लिए तकनीक वही है जो सीपीआर में है बस मुंह से मुंह को सांस नहीं देनी है। कई बार सीपीआर 10 से पहले पीड़ित की छाती पर एक फिट की दूरी से दो मुक्के मारने की भी सलाह दी जाती है। उसके बाद सीपीआर 10 शुरु किया जाता है।

क्या है सीपीआर का महत्व

दिल का दौरा पड़ने पर पहले एक घंटे को गोल्डन ऑवर माना जाता है। इसी गोल्डन ऑवर में हम मरीज की जान बचा सकते है। कभी कभी एंबुलेंस या मेडिकल सुविधा किसी कारण उपलब्ध नहीं होती है। ऐसे समय में सीपीआर किसी भी पीड़ित के लिए संजीवनी का काम कर सकता है।

दरअसल सीपीआर में हम सांस चलाने के काम और खून के बहाव को लगातार जारी रखने की कोशिश करते हैं। अगर किसी पीड़ित को 3-5 मिनट तक सांस नहीं आती तो उसके ब्रेन सेल मृत होना शुरु हो जाते हैं। अगर किसी पीड़ित को 10 मिनट तक सांस नहीं आ रही हो और प्राथमिक उपचार के तहत हम उसे कृत्रिम साँस न दे पाएं तो मरीज के बचने की संभावना बहुत कम हो जाती है।

इस तरह आप किसी ऐसे व्यक्ति की जान बचा सकते हैं जो दम घुटने, पानी में डूबने, दिल का दौरा पड़ने की वजह से अपनी धड़कने खो चुका है। इस दौरान कुछ सावधानियां भी बरतनी है। जैसे इस दौरान मरीज को अकेला बिल्कुल नहीं छोडना चाहिए। और डाक्टर के द्वारा निर्देशित दवा के आलावा मरीज को दूसरी कोई दवा नहीं दी जानी चाहिए।

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