लेखक की कलम से

सभी मौन क्यों …

 

मौन क्यों, आज जिस समाज में हम जी रहे हैं, जिंदा होते हुए भी मृत हैं, सब कुछ देखते हुए हम मौन है।

आज सरेआम राह चलती मासूम बच्चियों से छेड़छाड़, बलात्कर, चेहरे पर तेज़ाब डालना, कहीं अजन्मी बेटी का गला घोंटना तो कहीं किसी की बेटी को दहेज ना लाने पर ज़िंदा जलाना, सब देखते – जानते हुए भी हम सब मौन है, मज़दूर तबके का शोष‌ण, छोटे आफिसर से लेकर बड़े मंत्री तक सभी टेबल के नीचे से मौन तोड़ते अगर ऐसा नहीं होता तो मौन हो जाते हैं।

हमारा मौन अपराधिक मामलों को और बढ़ावा दे रहा है, देश में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है, अपराधी को सज़ा समय से मिलती, सालों- साल मुकदमे ही चलते रहते हैं, हम फिर भी मौन है क्यों ?????

शिक्षा क्षेत्र देखें तो शिक्षक जो इन्सान की बचपन से ही नींव मज़बूत करता है, वहां भी फीस के नाम पर मनमानी मोटी रकम ऐंठी जाती है, उसके बाद कहीं ट्यूशन फीस तो कहीं एक्टिविटी के नाम पर फीस, ऐसे खर्चे वहन ना कर सकने से परिवार संकुचित हो रहे हैं।

डाक्टरी पेशे में देखा जाए तो, इलाज के नाम पर व्यापार है, मुंह मांगी रकम पहले लेकर ही इलाज शुरू करते हैं।

जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन के निदेशक द्वारा कोरोना की बात पर मौन रहना, और जब तक हद बढ़ा नहीं तब तक मौन रहे, अगर ये मौन टूटा होता तो शायद आज ये हालात ना होते।

जगह-जगह हिन्दू- मुस्लिम को आपस में लड़ा कर हर कोई अपना उल्लू सीधा करता, लेकिन मौन रह कर, ऐसा मौन एक दिन देश को विनाश की ओर ले जाएगा।

अगर कोई दिल से सोचे ये सब मेरे साथ हो तो मैं कैसे सहन करूंगा, हम ये तो सोचते हैं कि जो हुआ, लेकिन ये नहीं सोच पाते कि ये सब मेरे साथ घटित हो तो कैसा लगेगा।

 

कुछ मौन ऐसे होते हैं जो चुभ जाते हैं दिल में नश्तर जैसे, मेरे एक दोस्त का हंसता – खेलता परिवार बहुत अच्छा लगता है, परिवार के प्यार की बातें जब वो बताएं तो सुन कर अच्छा लगता है, लेकिन उसके घर गए तो क्या देखा एक बुजुर्ग दूर कम रोशनी वाले कमरे में, जहां गंदगी भी है, जाने को जी ना चाहे, आवाज़ लगाता है कि कोई पानी देदो कब से मांग रहा हूं, बहुत प्यास लगी है तो जानकर हैरानी होती है कि वो दोस्त के पिता है, बच्चों पर उनकी बिमारी का असर ना इसलिए अलग कमरा बना दिया उनको, और घूरती आंखों से उन्हें पानी दिया जैसे कह रहा हो कि इस समय क्यो आए बाहर निकल कर।

कर्मों ऐसा व्यवहार उस जन्मदाता के साथ, क्या ऐसे मौन को कोई तोड़ेगा।

आज का समाज गुंगा होने के साथ-साथ बहरा और अंधा भी बन गया है, बापु के तीन बंदरों की तरह।

बापु के बन्दर ये नहीं कहते कि कहीं ज़ुल्म हो रहा है तो मत देखो, मत उसके खिलाफ कुछ कहो, या मत किसी अबला की चित्कार सुनो।

बापु के तीन बन्दर ये कहते हैं कि अन्याय के खिलाफ बोलो मगर अन्याय करने के लिए मौन रहो, किसी अबला की चित्कार सुनो कर कान मत बंद करो अपितु किसी अच्छे इन्सान की बुराई सुनने के लिए कान बंद करो, किसी अबला को तकलीफ़ सहते देख आंखें मत बंद करो अपितु हर बहु- बेटी की इज्जत कर उसे बेपर्दा ना करो ना देखो।

आओ कोई तो जागो, कोई तो ये मौन तोड़ो, इस मौन के खिलाफ कोई ऐसी मुहिम चलाओ कि ये मौन टूटे।

 

 

    ©प्रेम बजाज, यमुनानगर   

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