लेखक की कलम से
कार्तिक मास का स्वागत …
कुछ गुलाबी खाब लेकर
आया है शरद ऋतु यहां
अब पछिया पुरवैया डोले
आगे पीछे यहां वहां
ग़िलाफ बना धरती का धान
ल़िहाफ ले खेत चला किसान
विचारों की सरगर्मी से गांव
कुछ लोगों का बना है नाव
स्वागत करो अपने इमान की
दुरागत करो सब बेईमान की
ठिठुरन भरी सुबह आएगी
तन मन हौले से सहलाएगी!
©लता प्रासर, पटना, बिहार