नई दिल्ली

इफ्तार पार्टी के बाद बदलने लगे हैं नीतीश कुमार? समझें क्या है उनका पीएम नरेंद्र मोदी पर रिवर्स प्रेशर गेम …

पटना। बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू और भाजपा के बीच सबकुछ ठीक नहीं है? पिछले कुछ दिनों से बिहार में हर किसी के मन में यही सवाल उठ रहा है। जिस तरह दोनों दलों के बीच कई मुद्दों पर मतभेद खुलकर सामने आए हैं, उससे अटकलों को हवा मिल रही है। रमजान में 2 बार नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और आरजेडी नेताओं के साथ 2 बार इफ्तार पार्टी कर चुके नीतीश कुमार की पार्टी ने यूसीसी से लेकर लाउडस्पीकर विवाद तक पर नरेंद्र मोदी को आंखें दिखाई हैं। आइए आपको बताते हैं इस प्रेशर पॉलिटिक्स की क्या वजहें हैं और अब तक क्या-क्या हुआ है।

दरअसल, खटपट की शुरुआत कुछ दिन पहले उस समय हुई जब अचानक मीडिया में खबरें आईं कि राष्ट्रपति चुनाव में नीतीश कुमार विपक्ष का उम्मीदवार बन सकते हैं। इसके बाद तो जैसे बयानबाजी की बाढ़ आ गई। खुद नीतीश कुमार ने इन खबरों का खंडन किया लेकिन यह कहा जाने लगा कि बिहार में मुख्यमंत्री बदला जा सकता है। यूपी चुनाव के दौरान भाजपा से दुश्मनी मोल लेने वाले विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी को झटका देते हुए बीजेपी ने उनके तीनों विधायकों को अपनी पार्टी में मिला लिया। इससे भाजपा विधानसभा में सबसे अधिक विधायकों की पार्टी बन गई। इसके बाद कयास लगने लगे कि बीजेपी जल्द ही नीतीश की जगह अपने किसी नेता को मुख्यमंत्री बनाने की मांग रखेगी। नीतीश रहेंगे या जाएंगे इस सवाल पर दोनों दलों के बीच जमकर खींचतान हुई।

इस बीच बोचहां उपचुनाव में भाजपा को राजद से भारी अंतर से हार का सामना करना पड़ा। उपचुनाव के नतीजों ने भाजपा और जदयू के बीच खींचतान को और बढ़ा दिया। कुछ दिन पहले तक फ्रंटफुट पर आकर खेल रही भाजपा को बैकफुट पर धकेलने का जदयू को अच्छा मौका मिल गया। पार्टी के बड़े नेताओं ने हार का ठीकरा भाजपा पर फोड़ते हुए कहा कि नीतीश कुमार के नेतृत्व और कार्यकाल को लेकर सवाल उठाए जाने की वजह से नुकसान का सामना करना पड़ा है।

भाजपा का साथ छोड़कर धुर विरोधी राजद के साथ कुछ समय तक सरकार चला चुके नीतीश कुमार ने इफ्तार पार्टी से बिहार में नई खलबली पैदा कर दी। 2017 के बाद पहली बार जिस तरह नीतीश कुमार राबड़ी देवी के आवास पर पहुंचे यह अटकलें तेज हो गईं कि वह एक बार फिर पाला बदल सकते हैं। रही सही कसर लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप ने यह कहकर पूरी कर दी कि जल्द ही नीतीश कुमार के साथ उनकी पार्टी सरकार बनाएगी। एक इफ्तार पर भी चर्चे खत्म नहीं हुए थे कि अब जदयू ने लालू परिवार के लिए इफ्तार पार्टी रख दी।

इस बीच भाजपा ने उत्तराखंड, यूपी और बिहार समेत कई राज्यों में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पर चर्चा छेड़ दी है। जदयू इसके खिलाफ है और यदि भाजपा इस पर जोर देती है तो आने वाले दिनों में दनों दलों के बीच टकराव और बढ़ सकता है। दूसरी तरफ यूपी में मंदिर-मस्जिदों से हजारों लाउडस्पीकर उतारे गए तो भाजपा को अपनी ब्रैंडिंग का एक और हथियार मिल गया। लेकिन नीतीश कुमार ने इसे बेकार और बकवास बताते हुए कह दिया है कि उनकी सरकार किसी धार्मिक मामले में दखल नहीं देती है।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो नीतीश कुमार भाजपा का साथ छोड़ेंगे या नहीं यह तो आने वाला समय बताएगा लेकिन यह साफ है कि वह भग़वा दल पर रिवर्स प्रेशर बनाने की कोशिश में हैं। जिस तरह 2020 के विधानसभा जदयू की सीटें भाजपा से काफी कम रह गईं, नीतीश कुमार लंबे समय से प्रेशर महसूस कर रहे थे। धीरे-धीरे भाजपा उन पर हावी होती जा रही थी, लेकिन राजनीति के बेहद महीन खिलाड़ी नीतीश ने बेहद चालाकी से भाजपा पर उल्टा दबाव बना दिया है।

Back to top button