लेखक की कलम से

अड़े प्रजा के भूप …

भूले अपना धर्म क्यों, हे मानव तुम आज ।

रूप मनुज धारण किया, पर दानव सम काज ।।

 

दंगे में सब खो दिया, रंग बिरंगा रूप ।

संविधान के नाम पर, अड़े प्रजा के भूप ।।

 

बदल गया कितना मनुज, था जो शांति सुदूत ।

सत्य अहिंसा ज्योति को, बुझा रहे कुछ पूत ।।

 

संसद से बिल पास हो, जाय अल्पमत रूठ ।

दालें पत्थर की गलें, लगता बहुमत झूठ ।।

©डॉ. रीता सिंह, आया नगर, नई दिल्ली, अस्सिटेंड प्रोफेसर चंदौसी यूपी

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