छत्तीसगढ़

भांचा राम का ननिहाल, रावण के भाई खर और दूषण की नगरी में ब्रह्म हत्या का पाप काटने लक्ष्मण ने स्थापित किया था शिवलिंग…

जांजगीर-चाम्पा।  ‘छत्तीसगढ़ के काशी’ के नाम से प्रसिद्ध खरौद नगर को रामायण काल से जोड़कर देखा जाता है. खरौद याने रावण के भाई खर और दूषण के नाम पर बसा नगर माना जाता है. वनवास के दौरान दंडकारण्य क्षेत्र में प्रभु रामचंद्र और लक्ष्मण ने समय बिताया, जिसमें छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य क्षेत्र के साथ शिवरीनारायण और खरौद भी शामिल है. राम और रावण युद्ध के दौरान लक्ष्मण जी ने भी कई राक्षसों का वध किया और कई शस्त्रों के प्रहार झेले थे.

जांजगीर-चाम्पा जिला के खरौद नगर की प्राचीन और ऐतिहासिक महत्व है. आज भी इस नगर में विराजे शंकर की अपनी अलग ही पहचान और मान्यता है. यहां शिवजी की ऐसा लिंग है. जो मान्यता के अनुसार, लंका विजय के बाद ब्रम्ह हत्या का पाप काटने और क्षय रोग से मुक्ति पाने के लिए लक्ष्मण जी ने स्थापित किया था. इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र हैं, और इसी छिद्र में गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम भी माना जाता है.

ब्रम्ह हत्या और शस्त्रों से हुए वार के कारण लक्ष्मण जी क्षय रोग से ग्रसित हो गए थे, और इस रोग से मुक्ति पाने के लिए लक्ष्मण जी ने शंकर जी की आराधना की और एक लाख पार्थिव शिव लिंग की पूजा की, जिसके बाद एक लाख छिद्र वाला स्वयंभू शिवलिंग निकला और लक्ष्मण जी रोग और पाप से मुक्ति पाए.

खरौद के इस मंदिर में महाशिवरात्रि में शंकर जी की दर्शन करने और पूजा करने लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है. यहां धतूरा, बेल पान के साथ अलग-अलग फूल अर्पित करते हैं. इसके अलावा मनोकामना पूर्ति के लिए चावल के एक लाख दाने अर्पित किए जाते हैं. इस मंदिर में पूजा करने से विवाह योग्य युवतियों को सुन्दर वर, जिनके बच्चे नहीं होते उनका बच्चा होना और लक्ष्मण कुंड में स्नान करने से रोग से मुक्ति मिलने की मान्यता है.

खरौद के लक्ष्मणेश्वर शिवजी पहले खुले आसमान के नीचे स्थापित था. मंदिर में कुछ शिलालेख मिले हैं, जिसमें हैहयवंशी राजा कोकल्य देव का जिक्र किया गया है, जिनके 18 पुत्रों की उत्पत्ति और उनके पराक्रम के साथ शिवजी की स्तुति का उल्लेख है. 8वीं शताब्दी में राजा खड़गदेव ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया. अब इस मंदिर मी देख-रेख का जिम्मा पुजारियों के परिवार पर है. मंदिर के पुजारी अयोध्या में राम मंदिर स्थापना और रामचंद्र की पूर्ति स्थापना से खुश हैं, और इस ऐतिहासिक मंदिर को 22 जनवरी को दीपों से सजाने की तैयारी में जुट हैं.

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