बिलासपुर

अरपा के उस पार …

नथमल शर्मा

बिलकुल आज यही लिखना चाह रहा। अरपा के उस पार सरकंडा से लेकर राजकिशोर नगर तक पसरे सूनेपन पर। लेकिन अरपा की बूंदे उछल कर सोमालिया, जर्मनी, इटली तक जा पहुंची है। पूरी दुनिया इस विषाणु से त्रस्त है। किसी के पास इलाज़ नहीं। सावधानी के लिए मंदिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों, गुरुद्वारों के पट बंद किए गए हैं, तो भगवान छुट्टी पर और विज्ञान ड्यूटी पर वाली बहस छिड़ गई है। कहीं विज्ञानवादी और तर्कवादी अपनी बातें रख रहे हैं तो कहीं अस्पतालों में व्यवस्था की बात हो रही है। दानदाताओं की इतनी बड़ी- बड़ी राशि सुनने मिल रही है कि अपने जैसे हजार पांच सौ वाले तो खुद की हैसियत पर ही सोच रहे हैं। इन सब बातों के बीच लोग घरों में है (जो जरूरी है) हाथ धो रहे हैं और टीवी देख रहे हैं। अब तो रामायण और महाभारत भी। अपने घर में रहने का सुख महसूस कर रहे हैं। कुछ दानी धर्मात्मा बाहर भी जा रहे हैं। बांट रहे हैं रोटियां और फोटो खिंचवा रहे हैं। अच्छा है इन्हें देखकर और भी लोग प्रेरित होंगे।

दरअसल बात अरपा के उस पार से शुरू हुई थी और कहां से कहां पहुंच गई। कोरोना से उपजे हालात ही कुछ ऐसे हैं कि चित्त स्थिर नहीं। बहरहाल अरपा पार बसे सरकंडा की चटर्जी गलियां भी सूनी सूनी है। वहीं जिस चौक पर अक्सर सुखदेव सिंह मिल जाया करते थे। उनके साथी हर किसी की मदद को तैयार मिलते। वहीं तो बरसों पहले कुछ उत्साही युवा भी मिले। बसंत शर्मा और राजेश शुक्ला भी उनमें थे। साथ गए राकेश शर्मा ने कहा कि ऐसे युवा आगे आना चाहिए। आज दोनों ही बेहतर मुकाम पर हैं। पर ये भी घरों में ही है जो कि जरूरी है। आगे एसईसीएल मुख्यालय है। करीब एक लाख लोगों का दफ़्तर। संभाग भर में फैली खदानों का संचालन यहीं से। एक विद्वान सांसद हुए भगतराम मनहर, जिनकी गंभीर कोशिश से एसईसीएल मुख्यालय यहां बना। ये सब सूने-सूने से हैं। आगे अपोलो अस्पताल है जिसे एसईसीएल ने ही सहायता देकर शुरू करवाया। इसमें जुटे हैं डाक्टरों, नर्सों और बाकी मेडिकल टीम। यहीं बनाया गया है आईसोलेशन वार्ड। इसी वार्ड से जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय केशरवानी पार्षद है। लिंगियाडीह की सरकारी जमीनों का चर्चित विवाद भी यहीं है।

अरपा के उस पार ये सब कुछ है। यहां चिंगराज, चांटीडीह भी है। बघवा मंदिर भी और थोड़ा आगे शनिदेव भी बिराजे हैं। चांटीडीह का मेला हर बरस लगता है। ये पूरा इलाका शहर में गांव का अहसास भी कराता है। और यहीं आकर लगता है कि अरपा ने अपने इन दोनों इलाकों को पालने पोसने में कोई फर्क किया क्या? इस पार चमचमाते  सदर बाज़ार, गोलबाजार, लिंक रोड़, तेलीपारा, दो- दो मॉल, सिम्स, जिला अस्पताल, कलेक्टोरेट, नगर निगम, व्यापार विहार, रेलवे ज़ोन आफिस और भी न जाने कितना कुछ है। इस पार इतना कुछ और उस पार ? वह तो रामबाबू सोनथलिया ने दूर की सोची और राजकिशोर नगर बसाहट करवाई। बाकी ? ऐसे फरक के बीच विकसित हो रहा है अपना शहर। हालांकि सब कुछ बंद ही है।

पूरी दुनिया इन दिनों दुःखी है। सभी देश लड़ रहे हैं कोरोना से। हमारे अपने देश में भी लड़ रहे हैं सब। सरकार की कोशिश जारी है। कई लोग कोशिश में कमी पर सवाल भी उठा रहे हैं। हालांकि यह इसके लिए माकूल समय नहीं है। फिर कर लेंगे इस पर भी बात। आज तो मिल जुल कर इस भयावह समय से जूझने की जरूरत है। अरपा से भी और इस बहाने खुद से भी पूछेंगे कि उस पार को इतना पीछे क्यों छोड़ दिया ? मांगेंगे जवाब। अरपा की बूंदे उछल कर फिर अमरीका तक भी जा रही कि सबसे अच्छी मेडिकल सुविधा वाले उस देश में भी कोरोना संकट भयावह क्यों है ? अरपा के उस पार से लेकर अमरीका तक सवाल बिखरे हैं। जवाब भी हमें ही तलाशने हैं।

–लेखक देशबंधु के पूर्व संपादक एवं वर्तमान में दैनिक इवनिंग टाइम्स के प्रधान संपादक हैं।

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