स्त्री …
एक स्त्री के ख्वाब, जैसे शक्कर से होते है
घुल मिल जाना, जैसे चाशनी से मीठे होते है।
भरपूर प्रयास करती है, उसे पूरा करने का
ख्वाबों को संजोकर रखती है, उसे कला बनाने का।
तुम कितनी खूबसूरत हो, कहकर कोई उनके भाव बड़ा दे।
सुबह की चाय बनाकर, कोई उनका भी दिन बना दे।
हाय ! कितने सुहाने ख्वाब देखती है, ये स्त्रियां भी ना
सच में कितनी प्यारी होती है, ये स्त्रियां भी ना।
वो काजल और बिंदी, जिम्मेदारियां याद दिलाती है
अपने फर्ज, मुस्कुराकर निभाने का याद दिलाती है।
शाम की चाए बनाकर, करती मेरा इंतज़ार है वो
पानी का गिलास देकर, पूछती मेरा हाल है वो।
कभी आऊं देर से, तो मेरा इंतज़ार करती है
बैचैन मन उनका, वह गुस्सा दिखाकर बयां करती है।
ये स्त्रियां भी न देखो, कितनी अनमोल सी होती है
ये स्त्रियां भी न देखो, दोस्त से ज्यादा होती है।
सीप से गहरी, मन की भावनाओं से परे होती है
जो बना लेती है सबको अपना, वह स्त्री होती है।
मेरी तो ये, दुनियां नायाब करती है
साथ चल मेरे, मेरी मंजिल बनती है।
अनुपमा श्रीवास्तव, शिवपुरी, मध्य-प्रदेश