लेखक की कलम से

विश्व कविता दिवस …

प्रतिवर्ष 21 मार्च को विश्व कविता दिवस मनाया जाता है। यूनेस्को ने इस दिन को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा वर्ष 1999 में की थी जिसका उद्देश्य कवियों और कविता की सृजनात्मक महिमा को सम्मान देने के लिए था।

लेखन से जुड़े होने के नाते मैं यह कह सकती हूँ कि कविता मेरा पहला प्रेम है ,मेरी साधना है और अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति का वह ब्लैक बोर्ड है जहाँ मैं अपने विचारों को लिखती मिटाती रहती हूँ…!

      फिर हमारे जेहन में एक सवाल उठता है कि आखिर हम कविता करते क्यों हैं और कविता है क्या ?

  तो आइए धूमिल के शब्दों से जानते हैं कि

कविता क्या है…?

कविता क्या है,

कोई पहनावा, कुरता पाजामा है ?

   ना भईया ,

शब्दों की अदालत में, मुजरिम के कटघरे में …

बेकसूर आदमी का हलफनामा है।

क्या यह व्यक्तित्व बनाने की, चरित्र चमकाने की …

  खाने कमाने की चीज है ,

ना भई ना, कविता भाषा में,आदमी होने की तमीज है ।।

 इसी भाषा की तमीज के साथ हर कवि अपना व्यक्तित्व ही कवितामय बना लेता है।

   यदि आचार्य रामचंद्र शुक्ल के कविता सम्बन्धी विचार को देखें तो—

                       “जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की यह मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है। हृदय की इसी मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द-विधान करती आई है, उसे कविता कहते हैं।”

“तुलसी ने लिखा रामगान बनी कविता,

मीरा ने जो गाया कृष्णगान बनी कविता,

जब कोई पार्थ अवसाद से है हुआ ग्रस्त

कुरूक्षेत्र में भी गीता ज्ञान बनी कविता,

जब जब अंधकार को हुआ है गर्व देखो

उनके लिए तो दिनमान बनी कविता,

किसी के लिए है पहचान बनी कविता तो

किसी के लिए है सम्मान बनी कविता

भले ही कबीर ने फकीरी में है गाया पर

देख लीजिए है धनवान बनी कविता,

किसी के लिए हो भले कुछ नही बनी पर

मेरे लिए तो है मेरी प्राण बनी कविता…।”

वास्तव में काव्य, कविता या पद्य, साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ भरतमुनि से समझा जा सकता है। कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है।

काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो। अर्थात् वहजिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। रसगंगाधर में ‘रमणीय’ अर्थ के प्रतिपादक शब्द को ‘काव्य’ कहा है। ‘अर्थ की रमणीयता’ के अंतर्गत शब्द की रमणीयता (शब्दलंकार) भी समझकर लोग इस लक्षण को स्वीकार करते हैं। पर ‘अर्थ’ की ‘रमणीयता’ कई प्रकार की हो सकती है। इससे यह लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं है। साहित्य दर्पणाकार विश्वनाथ का लक्षण ही सबसे ठीक जँचता है। उसके अनुसार ‘रसात्मक वाक्य ही काव्य है’। रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की आत्मा है।

कविता दिवस का उद्देश्य–

विश्व कविता दिवस मनाने का उद्देश्य यही है कि विश्व में कविताओं के लेखन, पठन, प्रकाशन और शिक्षण के लिए नए लेखकों को प्रोत्साहित किया जाए। इसके जरिए छोटे प्रकाशकों के उस प्रयास को भी प्रोत्साहित किया जाता है जिनका प्रकाशन कविता से संबंधित है। जब यूनेस्को ने इस दिन की घोषणा की थी तब उसने कहा था कि क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कविता आंदोलन को यह एक तरह की पहचान मिली है।

कविता का मेरे जीवन में क्या महत्व है, ये मैं शब्दों में बयाँ नही कर सकती। जिंदगी के हर लम्हों में कविता का साथ सदैव मिला।

जिंदगी के हसीन लम्हों में कविता मुस्कुराती इतराती मिली, गम के पलों में अश्क़ भले ही आँखों से न आ पाए हों पर कविता ने मेरे हर गम उठाये।

चंद पंक्तियां आज के दिवस को समर्पित–

“कविता को बस धाराओं की बेड़ी

 में बांधा ना करना

तुम ख़ुद से अक्षर ना लिखना

ख़ुद कविता को लिखने देना

कविता का सम्मान स्वयं से थोड़ा सा ज्यादा रखना

और शब्दों में प्यार ना हो पर पूरी तुम मर्यादा रखना

कविता सर्द हवाओं में

हिमगिरी की चोटी पर मिलती

कविता से पतझड़ के मौसम में भी

सुंदर कलियां खिलतीं…”

आप सभी मित्रो, शुभचिंतकों, कवियों एवं काव्य प्रेमियों को आज विश्व कविता दिवस पर सहृदय हार्दिक शुभकामनाएं एवं ढेरों बधाई  ,

 आप सभी का प्रेम मेरी कविताओं के प्रति यूं ही बना रहे और मैं सदैव आपको अपने सृजन रूपी पौध से कविता रूपी पुष्प आपकी सेवा में अर्पित करती रहूँ इन्हीं शुभकामनाओं सहित एकबार पुनः विश्व कविता दिवस की बधाई हो…।।

©रीमा मिश्रा, आसनसोल (पश्चिम बंगाल)

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