लेखक की कलम से
ये कैसी मधुशाला …
डूबना चाहता हूं तेरी आंखों की हाला में, भीड़ लगी है मधुशाला में
नहीं प्यास मुझे बोतल की डूबना है तेरी आंखों की मधुशाला में ।
घर में खाने को दाना नहीं क्या करूं मैं ऐसी नशे की लत का
भूखे मर जाएंगे बच्चे मेरे, मैं अगर चला गया मधुशाला में ।
ग़र देना था किसी ग़रीब को सहारा तो देते रोटी का टुकड़ा
क्यों कर मासूमों की ज़िंदगी को ख़राब सबको धकेला मधुशाला में ।
बच्चे मेरे भूखे प्यासे घर-घर मांग रहे, दूध और टुकड़ा रोटी का
मैं कैसा निष्ठुर बन गया, बुझाने अपनी प्यास जा रहा मधुशाला में ।
आज किसी मन्दिर-मस्जिद में जाने की मनाही है *प्रेम* को
नहीं कोई मना कर रहा मुझे आज जाने को मधुशाला में ।
©प्रेम बजाज, यमुनानगर