लेखक की कलम से
क्या लिखुँ ….
कलाम लिए बैठी रही
समझ ना पाऊँ क्या लिखूँ
क्या भूखे की भूख लिखुँ
या दींन-हींन व्यथा बाँचु।
क्या विधवा का डर लिखुँ
या उसके घर का कर्ज लिखुँ,
उसके मन का अवसाद लिखुँ
या दिल उसके का दर्द लिखुँ।
चौराहे पर घर की इज़्ज़त
बेटी की परवाह लिखुँ,
लिखुँ गरीबी निर्धन की
या तन ढकने की बात लिखुँ।
राजनीति का लिखुँ धंधा
जिसमे इंसा ऑंख का अंधा,
बच्चों का व्यापार लिखुँ
या भिखमंगों का हाल लिखुँ,
आधे पेट जो नंगे सोते
उनकी नींदों का हाल लिखुँ,
या सूखी छाती से चिपके
भ्रमित बालक का हाल लिखुँ।
कलाम लिए बैठी रही
समझ ना पाऊँ क्या लिखूं।
©डॉ. प्रज्ञा शारदा, चंडीगढ़