मध्य प्रदेश

देश की इकलौती रियासत, जहां आज भी होती है राजगद्दी की पूजा, दशहरे पर निभाई जाती है परंपरा ….

रीवा। राजा महाराजाओं के शाही ठाट-बाट में राजगद्दी का अपना विशेष महत्व होता था, जिसकी गद्दी जितनी बड़ी उसका वैभव उतना बड़ा। ऐसे में भला कौन राजा इसमें बैठना नहीं चाहेगा। हालांकि अब भले ही रियासतें खत्म हो गई हों, लेकिन रीवा देश की एक ऐसी रियासत है, जहां महाराज गद्दी में बैठने की इच्छा नहीं रखते थे। बघेल रियासत के लगभग 450 वर्षों के वैभवशाली इतिहास में महाराज कभी गद्दी पर नहीं बैठे, उन्होंने राजाधिराज भगवान को राजगद्दी में बैठाया। राजगद्दी को भगवान का आसन माना और राजगद्दी की पूजा की। इस ऐतिहासिक परंपरा का निर्वाह आज भी दशहरे के दिन किया जाता है ।

कभी राजगद्दी की चाहत में कत्ल कर दिये जाते थे और बगावत हुआ करती थी, लेकिन एक ऐसी रियासत ऐसी भी है, जिसमें महाराज गद्दी में बैठने की इच्छा नहीं रखते थे। राजगद्दी को भगवान का आसन माना जाता है। रीवा रियासत देश की इकलौती रियासत है, जहां आज भी राजगद्दी की पूजा होती है। रीवा में यह परंपरा आज भी कायम है। यहां राजगद्दी में महाराजा नहीं, बल्कि राजाधिराज भगवान विष्णु बैठते हैं। रीवा रियासत के लगभग 450 वर्षो के इतिहास के दौरान कोई महाराजा राजगद्दी पर नहीं बैठे।

राजगद्दी में बैठाया राजाधिराज भगवान विष्णु को। ये आलीशान किला रीवा रिसायत के वैभवशाली इतिहास की कहानी बयां करता है। इसी किले में मौजूद हैं कई सुन्दर राजगद्दी। इस रियासत के 450 वर्ष गुजर गये,लेकिन गद्दी में महाराज व‍िराजमान नहीं हुए।

रीवा रियासत के महाराज पुष्पराज सिंह वर्षों से चली आ रही इस परंपरा को आज भी कायम रखे हैंं। गद्दी पूजा के बाद महाराज द्वारा नीलकंठ छोड़ा गया क्योंकि इसे शुभ माना जाता है। महाराज ने सभी नगरवासियों को दशहरे की शुभकामनाएं दी और खुशहाली की प्रार्थना की।

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