लखनऊ/उत्तरप्रदेश

1200 करोड़ के खाद घोटाले में 24 साल बाद उठे सवाल, हाईकोर्ट बोला- बच निकली डॉलफिन ….

कानपुर। 24 साल पुराने 1200 करोड़ रुपए के खाद घोटाले में आर्थिक अपराध ब्यूरो की भूमिका पर सवाल उठ गए हैं। हाईकोर्ट ने आदेश में साफ कहा है कि खाद घोटाले मे डॉल्फिन यानी बड़ी मछलियां बच गईं। घोटाले की मुख्य आरोपित कंपनी मदन माधव फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल प्राइवेट लिमिटेड, उनके निदेशकों, कृषि विभाग के आला अफसरों को आरोपित न बनाए जाने के कारण ही सीबीआई को जांच की कमान सौंपी गई है। अब ईओडब्ल्यू के अफसरों से भी जांच एजेंसी पूछताछ करेगी। करीब 24 वर्ष पहले फतेहगढ़ में हुए 1200 करोड़ के फर्टिलाइजर सब्सिडी घोटाले में सीबीआई ने कृषि विभाग के तत्कालीन आठ अधिकारियों समेत 20 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। हाईकोर्ट ने अविनाश कुमार मोदी की याचिका पर सुनवाई के बाद ईओडब्ल्यू द्वारा की जा रही जांच पर सवाल उठाते हुए जांच सीबीआई से करवाने का आदेश दिया था।

हाईकोर्ट ने ईओडब्ल्यू की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर बड़ी डॉल्फिन को क्यों छोड़ दिया गया। 24 साल फाइल क्यों बंद रही। जब इतने बड़े घोटाले के आरोपी 20 हैं तो आरोपपत्र पांच के खिलाफ ही क्यों जारी किया गया। घोटाले की मुख्य आरोपित कंपनी माधव फर्टीलाइजर्स को क्यों क्लीन चिट दी गई। दरअसल, याचिकाकर्ता का कहना था कि ईओडब्ल्यू ने 20 नामजद आरोपितों में से केवल पांच के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की है। घोटाले में लिप्त बड़े सरकारी अधिकारियों और कंपनी मदन माधव फर्टिलाइजर को बरी कर दिया। छह अधिकारियों से पूछताछ तक नहीं की गई। सीजेएम कोर्ट ने 13 साल बाद समन जारी किया। साल 2021 में भी तीन आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई है। जांच ठीक से नहीं की गई है। कोर्ट ने कृषि विभाग के अधिकारियों से पूछताछ न किए जाने पर भी सवाल उठाए।

गौरतलब है कि सीबीआई ने ईओडब्ल्यू के तत्कालीन एसआई सत्येंद्र कुमार मिश्रा को वादी बनाते हुए आईपीसी की धारा 120 बी, 409, 420, 467, 468, 471, 477ए व 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम-1988 के तहत 20 लोगों को नामजद किया है। घोटाला वर्ष 1989 से 2000 के बीच का है। आरोप है कि मेसर्स उज्ज्वल ट्रेडिंग कंपनी और मेसर्स मदन माधव फर्टिलाइजर एंड केमिकल्स कंपनी फर्रुखाबाद ने करीब 1200 करोड़ रुपये की खाद सप्लाई किए बिना सरकार से 48.18 करोड़ रुपये की सब्सिडी ले ली। वर्ष 2000 में यह मामला सामने आया। तत्कालीन एसीएस कृषि के आदेश पर कृषि विभाग की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन ब्रांच ने मामले की जांच की। इसमें वर्ष 1998-99 और वर्ष 1999-2000 में मेसर्स मदन माधव द्वारा की गई 3396.025 मीट्रिक टन रॉक फास्फेट और 6080.329 मीट्रिक टन सिंगल सुपर फॉस्फेट की खरीद-फरोख्त फर्जी पाई गई।

ये हुए नामजद: फतेहगढ़ निवासी प्रदीप कुमार अग्रवाल, मदन माधव फर्टिलाइजर्स, सुभाष चंद्र गुप्ता, ललितपुर निवासी सर्वेश कुमार जैन, ललितपुर की शांति सागर इंटरप्राइजेस, शरद खेड़ा, विंध्याचल मिनरल्स एंड माइनिंग प्राइवेट लिमिटेड ललितपुर, झांसी निवासी अविनाश कुमार मोदी, उज्ज्वला ट्रेडिंग कंपनी झांसी, रायबरेली निवासी चंद्रभान वर्मा, ललितपुर की एसीएल मिनरल्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक, फर्रुखाबाद के तत्कालीन जिला कृषि अधिकारी जीसी कटियार, तत्कालीन कृषि निदेशक रतन कुमार सिंह चौहान, तत्कालीन कृषि निदेशक इक्ष्वाकु सिंह, तत्कालीन संयुक्त कृषि निदेशक (वितरण) वीरपाल सिंह, तत्कालीन अतिरिक्त कृषि निदेशक (सामान्य) रंग बहादुर सिंह, गंगाराम, तत्कालीन संयुक्त कृषि निदेशक (वितरण) आदित्य नारायण सिन्हा, कृषि निदेशालय का तत्कालीन अकाउंट ऑफिसर (वितरण) अभय कुमार सिंह।

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