छत्तीसगढ़बिलासपुर

महिलाएं केंवची में बना रहीं 36 तरह की औषधियां, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार मिल चुके …

बिलासपुर । वनधन विकास केन्द्र डोंगानाला के स्व सहायता समूह को वनौषधि निर्माण हेतु प्रतिष्ठित ग्रिट पुरस्कार (पर्यावरण, सामाजिक और कार्पोरेट प्रशासन (ईएसजी) वर्ल्ड समिट) सिंगापुर में 22 एवं 23 जुलाई को दिया गया। इसके अलावा समूह को फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार 2008, उत्कृष्ट कार्य निष्पादन पुरस्कार वर्ष 2015 स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दूरदर्शन केन्द्र प्रशस्ति पत्र वर्ष 2016 में उत्कृष्ट कार्य जिला यूनियन वर्ष 2017 में, छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा वर्ष 2018 कोनी में आयोजित प्रशिक्षण में प्रमाण पत्र समेत राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार मिल चुके हैं।

जंगल से निकलने वाली जड़ी-बूटी से 36 प्रकार की औषधियां बनाकर छत्तीसगढ़िया महिलाएं हर साल 44 लाख रुपए से अधिक का व्यवसाय कर रही हैं। पेट और नसों से संबंधित रोगों के लिए कारगर इन औषधियों की बहुत डिमांड है। शुद्ध जड़ी-बूटी वाली औषधियां होने से इसके फायदे भी लोगों को मिल रहे हैं इसलिए इनका व्यवसाय भी धीरे-धीरे बढ़ने लगा है।बिलासपुर वन सर्किल के कटघोरा वन मंडल में डोंगा नाला में वन औषधि प्रसंस्करण केंद्र और मरवाही वन मंडल के केंवची में वन औषधि प्रसंस्करण केंद्र स्थापित है।

इनमें से वर्तमान में सिर्फ डोंगा नाला में ही औषधियों का निर्माण किया जा रहा है। यूरोपियन कमीशन परियोजना के तहत वर्ष 2006-07 में कटघोरा वन मंडल के डोंगा नाला में वन औषधि प्रसंस्करण केंद्र की स्थापना कर इसका संचालन महिलाओं की हरिबोल स्व-सहायता समूह डोंगा नाला को दी गई।

इस समूह की 12 महिलाओं ने रात दिन मेहनत की। जंगल से कच्ची जड़ी बूटी लाकर उसे औषधि बनाने के लिए कड़ी मेहनत की। जड़ी-बूटी को औषधि के रूप में तैयार करने में उन्हें आयुर्वेद चिकित्सकों का मार्गदर्शन मिला। शुरूवात में जिन महिलाओं को 500 और 600 रुपए की मासिक आमदनी हुआ करती थी उन महिलाओं को वर्तमान में 14 से 15 हजार रुपए महीना की आमदनी हो रही है।

यहां पर तैयार होने वाली औषधि से वातरोग, बवासीर, पथरी, उदररोग, बांझपन, सिरदर्द, ज्वर, चर्मरोग, लकवा, पेट का रोग, टीबी, सफेद पानी आदि बीमारियों का इलाज किया जाता है। बिक्री एनडब्ल्यूएफपी मार्ट, बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग, कांकेर, अंबिकापुर, जगदलपुर व संजीवनी केंद्र केंवचीं और कटघोरा से की जा रही है।

हिंगवाष्टक चूर्ण (उदरामृत), अजमोदादि चूर्ण (बातहर), अश्वगंधादि चूर्ण, सितोपलादि चूर्ण, अविपत्तिकर चूर्ण, बिल्वादि चूर्ण, पुष्यानुग चूर्ण, त्रिफला चूर्ण, पंचसम चूर्ण, शतावरी चूर्ण, आमलकी चूर्ण, पायोकिल (दंतमंजन), सर्दी खांसी नाशक चूर्ण, काली मुसली चूर्ण, महिला मित्र चूर्ण, हर्बल मधुमेह नाशक चूर्ण, हर्बल फेसपैक चूर्ण, हर्बल केशपाल चूर्ण (स्वानुभूत), सफेद मुसली चूर्ण एवं अर्जुनतत्व चूर्ण। इन्हें विशेषज्ञ डॉक्टरों के मार्गदर्शन में मात्रा मिलाकर तैयार किया जाता है।

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