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मध्यप्रदेश में इस बार लोकसभा चुनाव में एक रोचक तस्वीर देखने को मिल रही, जाने क्या

भोपाल,
 मध्यप्रदेश में इस बार लोकसभा चुनाव में एक रोचक तस्वीर ये भी देखने को मिल रही है कि पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की ओर से जिन दो प्रत्याशियों ने एक-दूसरे को टक्कर दी थी, वे इस बार एक दूसरे का हाथ थाम प्रचार करते नजर आ रहे हैं।

पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से चुनावी मैदान में उतरे चार प्रत्याशियों ने इस बार पाला बदल कर भाजपा का हाथ थाम लिया है। ऐसे में जहां एक ओर कांग्रेस के ये पूर्व प्रत्याशी अब इस बार भाजपा प्रत्याशियों के साथ कंधे से कंधे मिला कर प्रचार में जुटे हैं, वहीं कांग्रेस के लिए इन सीटों पर प्रत्याशी का चयन चुनौती बन गया है। इन चारों सीटों इंदौर, गुना, रीवा और राजगढ़ पर अब तक कांग्रेस की ओर से प्रत्याशियों की घोषणा भी नहीं हुई है।

राज्य की ऐसी सबसे दिलचस्प और हाईप्रोफाइल सीट गुना-शिवपुरी है। पिछली बार यहां से कांग्रेस की ओर से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनावी मैदान में थे, लेकिन भाजपा के बेहद लो प्रोफाइल प्रत्याशी डॉ के पी यादव ने उन्हें करारी शिकस्त देते हुए अपनी संसद सदस्यता से सुर्खियां बटोरीं थीं। उस समय दिलचस्प बात ये थी कि यादव उसी समय कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए थे और भाजपा ने इसे एक मौके की तरह देखते हुए यादव को ही सिंधिया के सामने उतार दिया। यादव अपनी लो प्रोफाइल छवि के कारण न केवल बहुत लोकप्रिय हुए, बल्कि उस समय कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे सिंधिया को हरा कर देश भर में सुर्खियों में भी आ गए। हालांकि सिंधिया बाद में 2020 में सभी को चौंकाते हुए भाजपा में आ गए और राज्य में सत्ता परिवर्तन का केंद्र बन गए।

इस बार भाजपा ने यहां यादव के स्थान पर सिंधिया को ही टिकट दिया है। हालांकि कांग्रेस की ओर से अब तक अपना रुख इस सीट को लेकर स्पष्ट नहीं हुआ, लेकिन माना जा रहा है कि कांग्रेस यहां से अपने किसी कद्दावर नेता को ही चुनावी मैदान में उतारने वाली है।
राज्य की इन सीटों में दूसरी सबसे अहम सीट इंदौर है। इंदौर से 2019 में भाजपा के शंकर ललवानी को कांग्रेस के पंकज संघवी ने चुनौती दी थी, लेकिन इस बार समीकरणों को पूरी तरह बदलते हुए संघवी ने स्वयं ही पिछले दिनों भाजपा की सदस्यता ले ली है।

पिछले चुनाव में ललवानी ने संघवी को करारी शिकस्त दी थी। भाजपा ने इस बार भी यहां से ललवानी पर ही भरोसा जताया है। कांग्रेस की ओर से यहां से कई नाम चर्चा में हैं, जिनमें एक नाम पार्टी की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष जीतू पटवारी का भी है।
भोपाल से सटी राजगढ़ सीट भी इस बार कुछ ऐसी ही तस्वीर देखने वाली है। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने यहां से दिग्विजय सिंह की समर्थक रहीं मोना सुस्तानी को टिकट दिया था, लेकिन उन्हें भाजपा के रोडमल नागर से शिकस्त का सामना करना पड़ा। मोना सुस्तानी पिछले साल विधानसभा चुनाव के छह महीने पहले भाजपा में शामिल हो गईं थीं। इसके बाद माना जा रहा था कि भाजपा उन्हें कोई अहम जिम्मेदारी सौंपेगी, लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में भी उन्हें भाजपा की ओर से किसी चुनाव का प्रत्याशी नहीं बनाया गया। इस बार वे नागर के साथ भाजपा के लिए चुनावी समर में प्रचार के मैदान में उतरी हुई हैं क्योंकि भाजपा ने इस बार भी यहां से नागर को ही प्रत्याशी बनाया है।

विंध्य की सीट रीवा में 2019 में जिन प्रत्याशियों ने एक-दूसरे के सामने ताल ठोंकी, वे भी इस बार एक-दूसरे के साथ कंधे से कंधे मिला कर प्रचार में जुटे हैं। ये सीट इसलिए इस दृष्टि से खास है क्योंकि कांग्रेस ने पिछली बार जिन सिद्धार्थ तिवारी को अपना लोकसभा प्रत्याशी बनाया, वे इस बार इस संसदीय सीट की त्योंथर विधानसभा से भाजपा के विधायक हैं। ऐसे में वे कई मंचों पर पिछले लोकसभा चुनाव में अपने प्रतिद्वंद्वी रहे और इस बार के भी भाजपा प्रत्याशी जनार्दन मिश्रा के साथ दिखाई दे रहे हैं।

तिवारी कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे श्रीनिवास तिवारी के पोते और कांग्रेस के पूर्व विधायक सुंदरलाल तिवारी के पुत्र हैं। स्वर्गीय सुंदरलाल तिवारी के बाद कांग्रेस ने पिछली बार उनके पुत्र सिद्धार्थ तिवारी को लोकसभा प्रत्याशी बनाया था। उनका सामना भाजपा के जनार्दन मिश्रा से हुआ था, लेकिन तिवारी चुनाव हार गए थे।

 

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