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प्रचंड सरकार अब चीन के कर्ज का जाल कहे जाने वाली बेल्‍ट एंड रोड परियोजना को लागू करने जा रही

काठमांडू
 नेपाल में चीन के इशारों पर नाचने वाले केपी ओली की पार्टी के पुष्‍प कमल दहल प्रचंड सरकार में शामिल होने का असर अब साफ नजर आने लगा है। नेपाल की प्रचंड सरकार अब चीन के कर्ज का जाल कहे जाने वाली बेल्‍ट एंड रोड परियोजना को लागू करने की राह पर है। यही नहीं नेपाल के डेप्‍युटी पीएम और व‍िदेश मंत्री काजी श्रेष्‍ठ रव‍िवार को चीन के दौरे पर जा रहे हैं। प्रचंड सरकार की इस योजना पर नेपाल में राजनीति काफी गरम हो गई है। नेपाल में भारत समर्थक कही जाने वाली मुख्‍य व‍िपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता और पूर्व व‍ित्‍त मंत्री प्रकाश शरण महत ने संसद के अंदर इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया और कड़ी आपत्ति जताई है।

प्रकाश शरण ने आशंका जताई क‍ि नेपाल की प्रचंड सरकार बीआरआई को लागू करने की तैयारी कर रही है। नेपाली अखबार काठमांडू पोस्‍ट की रिपोर्ट के मुताबिक प्रचंड सरकार ने अभी आधिकार‍िक रूप से बीआरआई को लागू करने का फैसला नहीं किया है लेकिन इस बात के ठोस संकेत है कि नेपाली उप प्रधानमंत्री की चीन यात्रा के दौरान बीआरआई का मुद्दा प्रमुखता से उठने जा रहा है। प्रचंड सरकार ने बीआरआई के क्रियान्‍वयन की योजना को लेकर किसी भी दल के साथ कोई सलाह नहीं की है। नेपाल के व‍िदेश मंत्री अपने चीनी समकक्ष वांग यी के बुलावे पर रविवार को बीजिंग जा रहे हैं। इस दौरान श्रेष्‍ठ चीन की सत्‍तारूढ़ कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के कई नेताओं से भी मुलाकात करेंगे।

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पुष्‍प कमल दहल सरकार की नई कैबिनेट आने के बाद यह नेपाली व‍िदेश मंत्री की पहली विदेश यात्रा है। वांग यी के साथ मुलाकात के अलावा श्रेष्‍ठ चीन के 3 अन्‍य शहरों में भी जाएंगे। महत ने कहा, 'हमने साल 2017 में बीआरआई को लेकर एक समझौते पर हस्‍ताक्षर किया था और उस समय मैं विदेश मंत्री था। लेकिन हमारी इसको लागू करने को लेकर चिंता बहुत महत्‍वपूर्ण है।' महत ने कहा, 'हम महंगे लोन को झेल नहीं सकते हैं, इसलिए नेपाल बार-बार चीनी पक्ष से कह रहा है कि वे हमारे देश में बीआरआई के तहत निवेश करना चाहते हैं तो ग्रांट के पहलू को बढ़ाएं।' नेपाल ने साल 2017 में बीआरआई पर हस्‍ताक्षर किया था लेकिन अभी तक इसे सार्वजनिक नहीं किया गया है। यही नहीं नेपाल की संसद में भी इस समझौते पर कोई चर्चा नहीं हुई है।

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नेपाल के व‍िदेश मंत्रालय के एक वरिष्‍ठ अधिकारी ने कहा, 'यह केपी ओली सरकार थी जिसे साल 2019 में बीआरआई को लागू करने का पहला मसौदा मिला था और दोनों के बीच काफी संवाद हुआ था।' उन्‍होंने कहा कि अगर यह उपयोगी रहा होता तो केपी ओली ने निश्चित रूप से इस पर हस्‍ताक्षर किया होता। हालांकि ओली ने ऐसा नहीं किया क्‍योंकि ऐसे प्रॉजेक्‍ट का चुनाव और उसके लिए पैसे देने हेतु बीआरआई को क्रियान्वित करने की जरूरत नहीं थी।' उन्‍होंने बताया कि चीन ने प्रॉजेक्‍ट की संख्‍या को घटा दिया है लेकिन इसके बाद भी बीआरआई को लागू करने पर जोर दे रहा है। नेपाल में एक अन्‍य दल राष्‍ट्रीय स्‍वतंत्रता पार्टी भी अब बीआरआई के मुद्दे को गरमाने जा रही है।

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