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आईफोन अलर्ट मामले में जांच में तेजी, भारत पहुंची ऐपल कंपनी की टीम

नई दिल्ली

पिछले साल अक्टूबर में आईफोन के सेक्योरिटी अलर्ट से जुड़े मामले में ऐपल की टीम अब तक दो बार CERT-In से मिल चुकी है। बीते दिनों पहली बार कंपनी के भारतीय प्रतिनिधि सीईआरटी-इन टीम से मिले, जिसके बाद एक दूसरी टीम अमेरिका से आई और उन्होंने जांच में मदद की । केंद्रीय आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने एनबीटी को बताया कि '' इस मामले में इस टीम के कर्मियों से कुछ सवाल पूछे गए, जिनका उन्होंने जवाब दिया। इसके बाद उनसे और सवाल पूछे गए।'' उन्होंने ये भी कहा कि इस मामले में अभी ऐपल के साथ बातचीत और जांच दोनों चल रही है, जिसके नतीजे आने अभी बाकी है।

दरअसल अक्टूबर महीने में शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी, कांग्रेस नेता शशि थरूर और विपक्ष के दूसरे नेताओं ने कहा कि था उन्हें उनके फोन पर मैसेज मिला कि उनके फोन को स्टेट स्पॉन्सर अटैकर्स ने हैक करने की कोशिश की है। सरकार ने हैकिंग की कोशिश के आरोपों से इनकार कर कहा था कि ऐपल के इस नोटिफिकेशन के मामले की गहराई तक जाने के लिए जांच होगी। मंत्री ने जानकारी दी कि इस मामले में कंपनी से फोन की सेफ्टी से जुड़े सवाल किए गए। 'इस मामले में सर्ट इन से कहा गया था कि आप ऐपल से पूछिए कि फोन सेफ है कि नहीं ? अगर फोन सेफ है तो बताए कि एलर्ट दिए जाने का क्या मतलब है। जिस दिन नोटिफिकेशन आया उसी दिन ऐपल ने कहा कि , ये गलत भी हो सकता है। हमने कंपनी से कहा कि संसद में इसे लेकर बवाल हो रहा है और ऐपल खुद को प्रचारित करता है, ऐपल…सेफ फॉर प्राइवेसी। आपको बताना है कि फोन सेफ है कि नहीं और अगर नहीं है तो ये बात हमें हमारे लोगों को बतानी होगी कि ये फोन सेफ नहीं है।

कंपनी बोली- एरर भी हो सकता है
लेकिन इसमें सरकार को लाना सही नहीं। क्योंकि प्रॉडक्ट किसी और का है। कंज्यूमर को नोटिफिकेशन मिल रहा है। ऐसे में ये कौन बताएगा कि नोटिफिकेशन क्यों मिल रहा है ? ये सॉफिस्टिकेटेड फोन हैं। इसमें मैन्युफैक्चरर और डिजाइनर ही बता पाएंगे कि ऐसा क्यों हुआ ? वैसे ऐपल कह चुका है कि ये एक एरर भी हो सकता है। बता दें कि इस घटना के दो महीने बाद 28 दिसंबर को अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने एक रिपोर्ट पब्लिश की, मोदी सरकार के कुछ बड़े अफसरों ने ऐपल कंपनी के अधिकारियों को बुलाकर अपनी हैकिंग वॉर्निंग से के जुड़े राजनीति असर को कम करने में मदद करने को कहा था।. हालांकि सरकार ने पहले भी इस रिपोर्ट का खंडन किया था और चंद्रशेखर ने इसे आधे सच वाली कहानी करार दिया था।

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